शुक्रवार, 10 जुलाई 2015

ज्योतिष शतप्रतिशत विज्ञान है

आज हम देख रहे है की समाज में ज्योतिष की लोकप्रियता बढती जा रही है, मांग और पूर्ति का भी एक सिधांत है की जब किसी चीज की मांग ज्यादा बढ़ जाती है तो वहां कुछ न कुछ गलत होने लगता है आज हमें सोचना चाहिए की माता सीता का हरण करने के लिए रामण को एक साधू का भेष धारण करना पड़ा था आखिर इसलिए ही की साधू के प्रति माता सीता आस्था रखती थी
और आसानी से रामण उनकी भावनात्मक इस्थितियों का गलत इस्तेमाल कर उनका हरण कर लंका ले जाने में कामयाब हो जायेगा !
ठीक इसी प्रकार आज जब ज्योतिष का प्रचार - प्रसार तथा लोकप्रियता बढ़ रही है तो कुछ लोग धन के लोभवश ज्योतिष के अधकचरे ज्ञान का उपयोग कर स्वयं तो अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं पर ज्योतिष जो वैदिक ऋषियों तथा वेदों का अमूल्य ज्ञान है उसकी लोक्रियता तथा विस्वसनीयता को छति हो रही है !
आज समाज में यह देखने को मिलता है की वैज्ञानिक तथा अन्य लोग देश के  विख्यात ज्योतिषियों से टीवी के प्रोग्रामो में चुनौती देते हैं की वह ज्योतिष की विस्वसनीयता सिद्ध करें टीवी प्रोग्राम में पुरे जनमानस के सामने ज्योतिषी यह सिद्ध नहीं कर पते की ज्योतिष विज्ञानं है क्यों कारण सिर्फ इतना सा है की उनके ज्ञान पर भौतिकता और पर्दा पड़ा है !
ज्योतिष धन उपार्जन का साधन हो सकती है पर ज्योतिष साधना का विषय है और साधना वातानुकूलित कमरों में रहकर नहीं हो सकती टीवी पर प्रोग्राम देखकर इन ज्योतिषियों को तो सरम नहीं आइ होगी पर प्रोग्राम देखकर मुझे या जो भी ज्योतिष प्रेमी हैं उनको जरुर दर्द हुआ होगा होना भी चाहिए , इस जगत में कोई भी विज्ञानं पूर्ण नहीं है पूर्ण सिर्फ परमात्मा है तो फिर ज्योतिष विज्ञानं की ही प्रमाणिकता क्यों मांगी जा रही है कारण ये जो भी कथाकथित ज्योतिष के विद्वान हैं सस्ती लोकप्रियता हाशिल करने के चक्कर में राशिफल , भाविश्यवानियाँ टीवी , पत्रिकाओं, अखबारों आदि में करते है हल्दी का रंग मालूम नहीं है पंसारी बने धूम रहे है दस्तखत करना आता नहीं कलक्टर बनाने का फार्म भर रहे हैं !
अरे भाई एक राशी के करोणों लोग हैं आप एक बांश से सभी को हांके जा रहे हो जोकरई करना अब भी बंद कर दो अपना नहीं तो कम से कम जिस ज्योतिष से तुम्हारी रोटी चल रही है उसकी ही खातिर सही अरे भाई अंडा खाओ तो खाओ मुर्गी पर तो तरस खाओ प्यारे !
अब रही बात ज्योतिष की तो भाई एक अस्पताल में एक ही मर्ज  के पाँच मरीज भर्ती हुए एक ही कमरे में भर्ती किये गए एक ही डाक्टर  इलाज करता  है परिणाम एक मरीज दो दिन में , दूसरा तीन दिन में , चौथा चार दिन में , पांचवा ठीक नहीं होता ओपरेशन करना पड़ता है फिर भी मर जाता है क्या अस्पताल की विस्वसनीयता पर या डाक्टर की विस्वसनीयता पर या दवाइयों की विस्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगाना चाहिए प्रत्येक मरीज की अपनी रोग प्रतिकारक सक्तियाँ भिन्न हैं टिक उसी तरह ज्योतिष भी है !

कृष्णमूर्ति पद्धति एक परिचय

ज्योतिष विद्या मूलत: कर्म के सिद्धांत पर आधारित है जिसमे ज्योतिषी किसी भी जातक कि कुंडली के आधार पर उसके भूत भविष्य  एवम वर्तमान का फल कथन करता है !

ज्योतिष में अनेक विधाए है जिनके आधार पर फलकथन किया जाता है जैसे सूर्य सिधांत, जेमिनी, अष्टकवर्ग, परन्तु सभी विधाए राशियों में ग्रहों की स्थिति के आधार पर ही फलकथन करती है कृष्ण मूर्ति पद्धति एक सटीक एवं सूक्ष्म भविष्यवाणी करने में सक्षम पद्धति है इस पद्धति की खोज ज्योतिष जगत के आधुनिक वराहमिहिर ब्रम्हलीन के ऍस कृष्णमूर्ति जी ने किया था , श्री कृष्णमूर्ति जी स्वयम तमिलनाडु सरकार के स्वस्थ विभाग में कार्यरत थे ज्योतिष में उनकी अत्यंत रूचि थी उन्होंने फलित ज्योतिष में भारतीय एवं पाश्चात्य दोनों ही शैलियों की समस्त विधाओं का अध्यन किया और उन्होंने खोज की कि राशियों से अधिक प्रभावशाली नक्षत्र है, उन्होंने यह शोध कि कि ग्रह किस राशि में है इस से अधिक यह महत्वपूर्ण है कि ग्रह किस नक्षत्र में है अर्थात प्रत्येक ग्रह जिस नक्षत्र में स्थित होता है उस नक्षत्र स्वामी के गुण एवम स्वाभाव के अनुरूप परिवर्तित हो जाता है !



उन्होंने जब यह देखा कि जुड़वां बच्चे जन्म लेते है तो जन्म समय में सिर्फ ५ या १० मिनट का अंतर होता है यदि कुंडली देखी जाये तो दोनों के जन्म नक्षत्र, राशि, लग्न यहाँ तक कि पूरी कि पूरी कुंडली एक जैसी हुबहू होती है सिर्फ विंशोत्तरी दशा काल में कुछ अंतर रहता है ब्रम्हलीन कृष्णमूर्ति जी ने यह विचार किया कि जब दोनों जुड़वाँ जन्म लेने वाले जातको की कुंडलिया एक सी है फलादेश भी एक ही है जब कि वास्तविकता कुछ और ही होती है दोने के रूप रंग , स्वाभाव, व्यव्हार, शिक्षा, विवाह, नौकरी आदि में असमानताए रहती है उन्होंने गहन अध्यन किया दिन रात ज्योतिष अनुसन्धान से उन्होंने आखिरकर ये खोज लिया कि जुड़वाँ जन्म लेने वाले बच्चो में ये असमानताए क्यों होती है !

भारतीय वैदिक ज्योतिष मूलरूप से नक्षत्र आधारित है कारण जब बालक का जन्म होता है तो सर्वप्रथम नक्षत्र के आधार पर उसके शुभ अशुभ का ज्ञान किया जाता ही फिर उसके अन्य संश्कारो के निर्धारण के लिए नक्षत्र के आधार पर ही मुहूर्त देखा जाता है जब विवाह कि बात आती है तो वर बधू का मेलापक भी नक्षत्र के आधार पर ही किया जाता है जब भी किसी शुभ कार्य के लिए मुहूर्त का निर्धारण करना होता है तब भी नक्षत्रों को ही प्राथमिकता प्रदान की जाती है कुंडली में भविष्य के फलादेश के लिए भी सर्वाधिक प्रयोग की जाने वाली विंशोत्तरी दशा का निर्धारण भी नक्षत्रों के आधार पर ही होता है  फिर फलादेश के लिए नक्षत्रों का प्रयोग क्यों नहीं !

रविवार, 6 नवंबर 2011





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देव दीपावली के अवसर पर दीप दान से होता है भाग्योदय.
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१० नवम्बर २०११ को कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन देव दीपावली है, देवदीपावली 


(पूर्णिमा) को रात्रि में देव नदी गंगा में दीप दान करना चाहिये, शास्त्रों में इस रात्रि


विशेषकर गंगा में दीप दान का बहुत महत्व बताया गया है, जिन स्थानो पर गंगा 


नहीं है वहां अन्य किसी नदी में अथवा सरोवर आदि में देवताओं के निमित्त दीप 


दान करना चाहिय्र !


देव दीपावली को दीपदान करने से जीवन का समस्या रूपी अन्धकार समाप्त होता है


तथा आनन्द और समृद्धि रूपी प्रकाश जीवन में हो जाता है ! 


यहां सभी लग्न के लोगों के लिये दीप दान के विशेष प्रयोग प्रस्तुत हैं आप अपनी 


सामर्थ्य अनुसार दीप दान करें दीप दान करने के लिये एक खाली दोना तथा उसमें


आवश्यक सामग्री तथा सामग्री के ऊपर एक दीपक जलाकर रखे तथा उसे जल में 


प्रवाहित कर देवताओं को अर्पित करना चाहिये तथा निवेदन करना चाहिये कि हम 


आपको प्रकाश स्वरुपी दीपक अर्पित कर रहे हैं हमारे जीवन में भी आनन्द स्वरूपी 


प्रकाश करो, ........ 


दीप दान १, ५, ७ . ११, २१, ५१, १०१ की संख्या में लिया जाना चाहिये !

मेष लग्न : खाली दोने में छिलके बाली मूंग की दाल २० ग्राम रखें तथा उसके ऊपर



एक घी का दीपक जला कर गंगा नदी में प्रवाहित करें !


वृष लग्न : खाली दोने में सफ़ेद बेला के फ़ूल रखकर तथा उसके ऊपर एक घी का 


दीपक जला कर गंगा नदी में प्रवाहित करें !


मिथुन लग्न : खाली दोने में लाल धुली मसूर की दाल २० ग्राम + गुण रखें तथा 


उसके ऊपर एक घी का दीपक जला कर गंगा नदी में प्रवाहित करें !


कर्क लग्न : खाली दोने में चने की दाल २० ग्राम रखें तथा उसके ऊपर एक घी का 


दीपक जला कर गंगा नदी में प्रवाहित करें !


सिंह लग्न : खाली दोने में काले तिल १० ग्राम रखें तथा उसके ऊपर एक घी का 


दीपक जला कर गंगा नदी में प्रवाहित करें !


कन्या लग्न : खाली दोने में काली मिर्च १० ग्राम रखें तथा उसके ऊपर एक घी 


का दीपक जला कर गंगा नदी में प्रवाहित करें !


तुला लग्न : खाली दोने में चने की दाल + १ हल्दी रखें तथा उसके ऊपर एक 


घी का दीपक जला कर गंगा नदी में प्रवाहित करें !


वृश्चिक लग्न : खाली दोने में लाल धुली मसूर की दाल २० ग्राम रखें तथा उसके


ऊपर एक घी का दीपक जला कर गंगा नदी में प्रवाहित करें !


धनु लग्न : खाली दोने में सफ़ेद तिल १० ग्राम रखें तथा उसके ऊपर एक घी का 


दीपक जला कर गंगा नदी में प्रवाहित करें !


मकर लग्न : खाली दोने में हरी दूब रखें तथा उसके ऊपर एक घी का दीपक जला 


कर गंगा नदी में प्रवाहित करें !



कुम्भ लग्न : खाली दोने में चावल १० ग्राम + मिश्री रखें तथा उसके ऊपर एक 


घी का दीपक जला कर गंगा नदी में प्रवाहित करें !


मीन लग्न : खाली दोने में गेंहूं १० ग्राम रखें तथा उसके ऊपर एक घी का दीपक 


जला कर गंगा नदी में प्रवाहित करें !


किसी भी तरह की आशंका होने पर तुरन्त संपर्क करें !



निवेदक :-



आचार्य सुशील कुमार अवस्थी


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M.No. 91+9236075255, 91+8081825333

रविवार, 23 अक्तूबर 2011

दीपावली पूजन् का शुभ् मुहूर्त्


दीपावली पूजन् का शुभ् मुहूर्त् :
आप् सभी को दीपावली के शुभ् पर्व् पर् शुभकामनाएं !
मित्रों दीपावली दिनांक् २६ अक्टूबर् २०११ दिन् बुधवार्, इस् दिन् हमारे सनातन् परंपरा है कि इस् दिन् हम् अपने घरों में प्रकाशोत्सव् मनाते हैं धन् और् समृद्धि की देवी लक्ष्मी, शुभता और् कल्यांण् के देव् गणेश् तथा यक्षराज् कुबेर् आदि का पूजन् सुख्-समृद्धि तथा आरोग्य् की कामना से किया जाता है तत्पश्चात् दीप् जलाये जाते हैं !
दीपावली पर्व् का पूजन् शुभ् मुहूर्त् में किया जाना चाहिये, शास्त्र् कहते हैं कि स्थिर् तत्व् की लग्न् में ही पूजन् किया जाना चाहिये, इस् वर्ष् दीपावली, कार्तिक् आमावस्या के दिन् पूजन् वृषभ् लग्न् में किया जाना चाहिये कारण् यह् वृषभ् लग्न् पृथ्वी तत्व् तथा स्थिर् लग्न् है तथा लग्न् स्वयं भौतिक् सुख्-समृद्धि की कारक् राशि है जिसका स्वामी शुक्र् है, शुभ् मुहूर्त् में पूजन् करना अत्यन्त् लाभदायक् होता है यह् लग्न् लगभग् पौने दो घंटे की है तथा अलग्-अलग् शहरों में दीपावली का शुभ् मुहूर्त् इस् प्रकार् है :----
कानपुर् -----------------------------शायं काल् 06.45 से 08.30 तक्
दिल्ली-------------------------------शायं काल् 06.50 से 08.35 तक्
मुम्बई-------------------------------शायं काल् 07.20 से 09.05 तक्
कोलकता----------------------------शायं काल् 06.10 से 07.55 तक्
पटना--------------------------------शायं काल् 06.20 से 08.05 तक्
चण्डीगढ्-----------------------------शायं काल् 06.45 से 08.30 तक्
इन्दौर्-------------------------------शायं काल् 07.05 से 08.50 तक्
अहमदाबाद्--------------------------शायं काल् 07.15 से 09.00 तक्
अन्य् किसी भी शहर् के मुहूर्त् अथवा अन्य् किसी भी समस्या आदि के विषय् में संम्पर्क् करें :
Acharya Sushil Awasthi Prabhakar
http://astrologykp.com/
Mobile No. 91-9236075255, 91-8081825333.


दीपावली पूजन् का शुभ् मुहूर्त् :
आप् सभी को दीपावली के शुभ् पर्व् पर् शुभकामनाएं !
मित्रों दीपावली दिनांक् २६ अक्टूबर् २०११ दिन् बुधवार्, इस् दिन् हमारे सनातन् परंपरा है कि इस् दिन् हम् अपने घरों में प्रकाशोत्सव् मनाते हैं धन् और् समृद्धि की देवी लक्ष्मी, शुभता और् कल्यांण् के देव् गणेश् तथा यक्षराज् कुबेर् आदि का पूजन् सुख्-समृद्धि तथा आरोग्य् की कामना से किया जाता है तत्पश्चात् दीप् जलाये जाते हैं !
दीपावली पर्व् का पूजन् शुभ् मुहूर्त् में किया जाना चाहिये, शास्त्र् कहते हैं कि स्थिर् तत्व् की लग्न् में ही पूजन् किया जाना चाहिये, इस् वर्ष् दीपावली, कार्तिक् आमावस्या के दिन् पूजन् वृषभ् लग्न् में किया जाना चाहिये कारण् यह् वृषभ् लग्न् पृथ्वी तत्व् तथा स्थिर् लग्न् है तथा लग्न् स्वयं भौतिक् सुख्-समृद्धि की कारक् राशि है जिसका स्वामी शुक्र् है, शुभ् मुहूर्त् में पूजन् करना अत्यन्त् लाभदायक् होता है यह् लग्न् लगभग् पौने दो घंटे की है तथा अलग्-अलग् शहरों में दीपावली का शुभ् मुहूर्त् इस् प्रकार् है :----
कानपुर् -----------------------------शायं काल् 06.45 से 08.30 तक्
दिल्ली-------------------------------शायं काल् 06.50 से 08.35 तक्
मुम्बई-------------------------------शायं काल् 07.20 से 09.05 तक्
कोलकता----------------------------शायं काल् 06.10 से 07.55 तक्
पटना--------------------------------शायं काल् 06.20 से 08.05 तक्
चण्डीगढ्-----------------------------शायं काल् 06.45 से 08.30 तक्
इन्दौर्-------------------------------शायं काल् 07.05 से 08.50 तक्
अहमदाबाद्--------------------------शायं काल् 07.15 से 09.00 तक्
अन्य् किसी भी शहर् के मुहूर्त् अथवा अन्य् किसी भी समस्या आदि के विषय् में संम्पर्क् करें :
Acharya Sushil Awasthi Prabhakar
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दीपावली पूजन विधि


मैं आप सभी के साथ दीपावली के पर्व के अवसर पर होने वाले अनुष्ठान, पूजन आदि के विषय में एक व्यवहारिक चर्चा कर रहा हूं !
आखिर दीपावली क्या है यह क्यों मनाई जाती है ?
कुछ लोग कहते हैं कि भगवान राम चौदह वर्षों के बनवास के बाद वापस आये थे इस कारण उत्सव मनाया जाता है !
कुछ लोग कहते हैं कि भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी इस कारण उत्सव मनाया जाता है ! 
मित्रों कार्तिक मास वर्ष का सबसे अधिक अन्धकार का माह होता है और फ़िर माह की अमावस्या तो सर्वाधिक अन्धकार का दिवस होता है, अन्धकार को हमारी सनातन सभ्यता में अशुभ कहा गया है अन्धकार का अर्थ संकट, दुर्भाग्य, दारिद्र, क्लेश आदि आदि कहा गया है !
जब हमारे समाज-घर आदि में शुभ अवसर अथवा उत्सव होते है तो हम दिये जलाते हैं प्रकाश करते हैं ! 
कार्तिक अमावस्या को सर्वाधिक अन्धकार होता है और हम अन्धकार रूपी दुर्भाग्य, दारिद्र, दुख आदि से मुक्ति हेतु अपने-अपने गृह साफ़-सज्जा आदि करते है नया रंग-रोगन आदि कराते हैं प्रकाश करते है दीप जलाते हैं अपने घरों में हम् गणेश्-लक्ष्मी आदि देवी देवताओं को आमंत्रित् करते हैं उनका पूजन् आदि करते हैं हम आनन्दोत्सव मनाते हैं स्वादिष्ट व्यंजन बनाते हैं ! 
हम इस प्रकाशोत्सव के अवसर पर सर्वप्रथम अपने घरों में सुख-समृद्धि की दात्री महालक्ष्मी जी, शुभता-सौभाग्य प्रदाता गणेश जी, धन के देवता यक्षराज कुबेर आदि देवताओं को आमंत्रित करते हैं उनका स्वागत-सत्कार आदि करते हैं उन्हें प्रसन्न करते हैं जिसका मूल कारण है सुख-समृद्धि-आरोग्य की कामना !
लोग अक्सर मुझसे प्रश्न करते हैं कि दीपावली पूजन आदि किस प्रकार करना चाहिये जिससे हमें जीवन में सुख समृद्धि तथा आरोग्य प्राप्त हो सके ! 
वैसे तो आप सभी ने तमाम पुस्तकों, अखबारों, चैनलों तथा वेबसाइटों आदि में पढा होगा कि दीपावली के अवसर पर सुख-समृद्धि-आरोग्य की कामना हेतु पूजन-अनुष्ठान आदि किस प्रकार करना चाहिये ! 
तमाम तरह के मंत्र, श्लोक तथा सूक्त आदि के साथ पूजन आदि का विधान वर्णन रहता है ! जिसमे मूलतः संस्कृत भाषा होती है ! 
संस्कृत देववाणी है, देव भाषा है किसी भी पूजन-अनुष्ठान आदि में संस्कृत का प्रयोग होना चाहिये यह उत्तम है परन्तु संस्कृत के मंत्र, श्लोक, सूक्त आदि के उच्चारण आदि में बहुत सावधान रहने की आवश्यकता होती है अन्यथा श्लोक, मंत्र, सूक्त आदि का अर्थ अनर्थ होने का भय रहता है जिसके परिणाम स्वरूप पूजन-अनुष्ठान आदि से प्राप्त होने वाले परिणाम भी घातक हो सकते हैं ! 
मित्रों समाज में जो समृद्ध लोग हैं वो दीपावली पर्व की पूजा-अनुष्ठान आदि के लिये आचार्य का सहयोग लेते हैं परन्तु आज के समय दीपावली पर्व पर साधारण व्यक्ति पूजा-अनुष्ठान आदि के लिये आचार्य की व्यवस्था नहीं कर सकता है कारण आर्थिक तथा सामाजिक दोनो ही हो सकते हैं !
परिणामतः समाज का सामान्य व्यक्ति जिसने दीपावली पूजन-अनुष्ठान आदि के विधि-विधान के विषय में पुस्तकों, अखबारों, चैनलों तथा वेबसाइटों आदि के माध्यम से जानकारी की है वह भी सुख-समृद्धि-आरोग्य आदि की कामना से दीपावली पूजन अनुष्ठान आदि करता है जिसमें वह विधि में वर्णित संस्कृत के मंत्र-श्लोक-सूक्त आदि का प्रयोग करता है ! 
संस्कृत के मंत्र-श्लोक-सूक्त आदि का शुद्धता से उच्चारण करना सभी के लिये संभव नहीं है परन्तु सुख-समृद्धि-आरोग्य आदि की कामना के कारण लोग संस्कृत के मंत्र-श्लोक-सूक्त आदि का प्रयोग करते हैं ! 
मेरा यहां ये सब कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि संस्कृत के मंत्र-श्लोक-सूक्त आदि से पूजन आदि नहीं करना चाहिये मेरा कहना सिर्फ़ यह हैं कि यदि आप शुद्ध संस्कृत उच्चारण करने में सक्षम हैं तो आवश्य संस्कृत के मंत्र-श्लोक-सूक्त आदि का प्रयोग करें अन्यथा संस्कृत के मंत्र-श्लोक-सूक्त आसि का अशुद्ध उच्चारण आपकी आपेक्षाओं के विपरीत अशुभ परिणाम प्रदान कर सकता है ! 
दीपावली पूजन् में ये आवश्यक् नहीं है कि आप् सिर्फ़् संस्कृत् के मंत्रों, श्लोकों तथा सूक्तियों के द्वारा ही पूजन् करें क्या आप् ऐसा सोचते हैं कि बिना संस्कृत् के मंत्रों, श्लोकों तथा सूक्तियों के कोई पूजन् अनुष्ठान् सफ़ल् नहीं होता ? 
किसी भी पूजा, हवन् अथवा अनुष्ठान् में सबसे अधिक् आवश्यकता है श्रद्धा की और् श्रद्धा ही भाव के माध्यम् से कर्म् में जब् प्रविष्ठ् हो जाती है तो जन्मता है विश्वास्, और् यदि आप् श्रद्धा और् विश्वास् से परिपूरित् हो कर् किसी पूजा, हवन् अथवा अनुष्ठान् आदि को करते हैं तो लाभ् अथवा आपेक्षित् फ़ल् की प्राप्ति आवश्य् होगी ! 
अब् प्रश्न् उठता है कि दीपावली के पूजन् की बिधि क्या है इसे कैसे करना चाहिये ! 
सर्व् प्रथम् दीपावली के पूजन् के समय् से पूर्व् हम् अपने निवास् अथावा घर् को साफ़् सुथरा करना चाहिये !
पूजा के लिये स्थिर् लग्न् के मिहूर्त् की जानकारी कर् शुभ् लग्न् में ही पूजन् प्रारम्भ् करना चाहिये ! 
पूजन् के पूर्व् चावल् तथा हल्दी के मिश्रण् को घोल् कर् घर् के द्वार् के दोनो तरफ़् स्वास्तिक् चिन्ह् तथा द्वार् के ऊपर् ऊं तथा शंख्, चक्र् गदा, पद्म् (कमल्) आदि निर्मित् करने चाहिये ! घर् के द्वार् पर् सुन्दर् बन्दनवार् बांधना चाहिये घर् के बाहर् रंगोली बनाना चाहिये, गाय् के गोबर् से द्वार् के बाहर् लीपना चाहिये ! कहने का तात्पर्य् है कि स्वयं मनोभाव् ये होने चाहिये कि आज् हमारे घर् मां लक्ष्मी, गणेश् आदि देवता पधारने वाले हैं !
पूजा का नियम् बहुत् साधारण् है सर्वप्रथम् धरती मां की पूजा, फ़िर् नव् ग्रह् पूजा, फ़िर् कलश् पूजन् तत्पश्चात् गणेश्-लक्ष्मी आदि का पूजन् किया जाना चाहिये ! 
पूजन् में श्रद्धा पूर्वक् सर्वप्रथम् देवता को आवाहन् करना चाहिये (बुलाना), आसन् प्रदान् करना चाहिये, स्नान् कराना चाहिये, वस्त्र् समर्पित् करना, तिलक् करना, अक्षत् चढाना, फ़ूल् माला चढाना, विशेष् सामग्री समर्पित् करना (गणेश् जी को दूर्बा-धनिया-गुण्-मोदक् , लक्ष्मी जी को कमल् गट्टे का बीज्-सिन्दूर्-पान्-सुपाड़ी आदि,  नैवेद्य् (प्रसाद्) अर्पित् करना, दीपक् समर्पण्, धूप् दर्शन्, आरती !
  पूजा के आन्त् में श्रद्धा पूर्वक् क्षमा याचना करनी चाहिये !
निवेदन् "हे प्रभु हमने आपका स्वागत् सत्कार् अपनी परिस्थिति, सामर्थ्य् और् ज्ञानानुसार् किया है आप् हमारे घर् पधारे हमारे भाग्य् हैं हमारी सेवा आरती स्वीकार् की हमें धन्य् किया आपने हमसे यदि कोई गलती हुई हो तो अपना जान् हमें क्षमा करना हम् पर् कृपा करें प्रभु हमारे सुख् और् आनन्द् में आप् हमेशा हमारे साथ् रहें"

रविवार, 10 जुलाई 2011

मंगल दोष



मंगल दोष : बात लगभग दो महिने पहले की है जब सुबह मैं जब टहलने जा रहा था तभी मेरे नगर के एक बुजुर्ग रास्ते में मिल गये कहने लगे कि अवस्थी जी आपसे एक काम है मैने कहा आदेश करिये !
वो मेरे साथ-साथ टहलते हुए वो काफ़ी दुखी मन से बोले, "मेरी एक पोती की कुण्डली में मंगल दोष है !"
मैंने मह्सूस किया कि वो बहुत दुखी भाव से यह सब कह रहे थे, उनकी आंखों मे भय तैर रहा था....
मैने मुस्कुराते हुए उनसे प्रश्न किया,  "ये मंगल दोष आखिर क्या है?"
वो बुजुर्ग हैरानी से मेरी ओर देखते रह गये बोले’ "भैया अभी पिछले हफ़्ते जब दिल्ली गया था वहीं मेरी बडी बेटी की ससुराल है उसी की रिश्तेदारी में ही एक लडका था जिससे मेरी पोती के रिश्ते के लिये बात चल रही थी सो कुण्डली लडके वालों के यहां गई थी जब मैं दिल्ली गया था तो उन्होने ही बताया कि एक पंडित जी को उन्होने विवाह मिलान के लिये कूण्डली दिखाई थी तो लडके वाले बता रहे थे कि पंडित जी ने कहा है कि इस लडकी की कुण्डली में मंगल दोष है ये बहुत अशुभ है"
इतना सुनकर मुझे दुख तो हुआ पर क्रॊध भी आ रहा था कि ये कौन सा ड्रामा है मंगल दोष ?
मैंने उनसे कहा कि ये कोई भी दोष नहीं है आप मुझे कुण्डली दिखाना !
उन्होंने मुझे बताया कि लडके के पिता उनके बहुत पुराने मिलने वाले हैं उन्होने मुझे ये मंगल दोष की जो बात बताई है ये घर में कोई नहीं जानता, क्यों कि इस दोष के बारे में यदि घर पर सभी जानेगे तो चिन्ता बढेगी !
मैने उनसे प्रश्न किया कि इस दोष से मुक्ति का कोई उपाय क्या दिल्ली वाले महराज जी ने बताया है !
इस पर वह बोले हां एक अनुष्ठान की बात कही है लगभग २०,०००/- का खर्च लडके वालों से बताया था !
मैने उनसे कहा आप लड्के वालों के माध्यम से पंडित जी से बात करिये कि यदि यह अनुष्ठान करा दिया जाय तो क्या उस लडके के साथ आपकी पोती की शादी हो सकती है ? और उसके बाद मुझे दोनो कूण्डली दिखा दीजियेगा ! आप किसी तरह का किसी से कोई वादा मत कीजियेगा और तनाव में मत रहिये ये राज काज है सब ठीक हो जायेगा ! आप अपनी टेंशन मुझे दे दो !
इतना सुनकर वो बोल पडे जब से दिल्ली से आया हूं बहुत टेंशन है घर में किसी को कोई बात नही बताई है कारण मैं दिल्ली किसी दूसरे काम से गया था, बेटे को इसलिये नहीं बताई कि व्यापार का ही काफ़ी टॆंशन है और वो ब्लडप्रेशर का मरीज भी है !
खैर मैने उन्हे शाम सात बजे का समय दिया कि दोनो का जन्म विवरण और पंडित जी की राय के साथ मुझे मिलिये !
शाम सात बजे वो मेरे पास आ गये उनके चेहरे से संन्तुष्टि झलक रही थी परन्तु उस वक्त मैं कुछ अन्य लोगों के साथ व्यस्त था, लगभग आधे घंटे बाद उनसे मेरी बात हुई !
वो तुरन्त मुझसे कहने लगे कि पंडित जी का कहना है कि अनुष्ठान सम्पन्न होने के बाद दोष शान्त हो जायेगा तब इन दोनो की शादी में कोई व्यवधान नहीं है !
मैने प्रश्न किया कि क्या इस सम्बन्ध के लिये लडके वाले राजी हैं ?
इस पर वह कहने लगे कि लडके के पिता से उनके घनिष्ट संम्बन्ध हैं वह तो राजी हैं इसमें कोई समस्या नहीं है ! वो तो अनुष्टान अपने घर पर ही करवाना चहते हैं !
मैने कहा खैर आप अभी ये सब छोडिये अभी तो दोनो की कुण्डली देखी जाय !
सबसे पहले लडके की कुण्डली मैने देखी बस मेरे मुह से एक ही बात निकली कि ये शादी नहीं करनी है इस लड्के के जीवन में स्थायित्व वैवाहिक स्तर पर नहीं है अर्थात दाम्पत्य जीवन में तनाव रहेगा, और बाकी सब छोड कर आप किसी तरह इस बात की जांच कराइये कि इस लडके का समाजिक रहन सहन कैसा है !
इस पर वह तुरन्त बोले हां ये तो मै तुरन्त पता करवा लुंगा मेरे कई रिस्तेदार दिल्ली में है और सभी व्यापारी है लड्का अपना स्वयं का व्यापार चलाता है तुरन्त पता चल जायेगा,
अब वो मुझसे लडकी की कुण्डली देखने को कहने लगे !
मैने कहा लड्की की कुण्डली बाद में देखुंगा जब आप लडके के बारे में सही जानकारी पता कर लेंगे तब फ़िर लडके की पत्री देखेंगे !
लगभग चार दिन के बाद दोपहर में उनका फ़ोन आया कि वो आज मिलना चाहते हैं मैने शाम सात बजे आने को कहा !
शाम सात बजे वो आ गये साथ में मिठाई का डिब्बा भी ले कर आये थे मैने उनके चेहरे की रंगत देखी तो बात समझ में आ गयी कि लडके के बारे मे तहकीकात पूरी हो गई है !
मैने पूछा बाबू जी क्या बात है आज तो बिल्कुल तरो ताजा लग रहे हैं !
मेरा इतना कहना हुआ कि बाबू जी बोल पडे वो लडका तो बिल्कुल वैसा ही है जैसा आप कह रहे थे बोले उस लड्के की बाजार में मेरा एक रिस्तेदार दलाली का काम करता है उनसे मैने कहा था वो बोले कल मै बाजार के कुछ जवान लड्कों से बात करूगा !
बाबु जी कहे जा रहे थे , जिससे भी उस दलाल नें उस लडके के बारे में पूछा उसने ही उसकी चरित्रिक एंव सामजिक बुराई ही की यहां तक कि उस दलाल को भी यकीन नहीं हो रहा था कारण वह उस बाजार में लगातार रहता है और उसको भी नहीं मालुम था, यहां तक कि लडका देखने में बहुत शरीफ़ लगता है कोई कह नहीम सकता कि चरित्रिक तौर पर इतना खराब है !  

मुझे तो वो बुजुर्ग मिठाई का डिब्बा देकर बोले अब आप बताइये क्या आज मेरी पोती की कूण्डली देखेंगे ?
मैने उनसे कहा अब यह कुण्डली मै तभी देखुंगा जब जरूरत होगी !
उन्होने मुझसे प्रश्न किया कि कम से कम वो जो मंगल वाला खतरनाक योग है उसका तो कुछ निवारण निकालिये !
मैने कहा बाबू जी जिसकी रक्षा स्वयं भगवान कर रहा है उसके लिये हम क्या कर सकते हैं !
अब आप ही बताइये अगर वह दिल्ली वाले पंडित जी नें अगर मंगल योग ना बताया होता तो शादी भी तय हो जाती और आखिर पोती की जिंदगी भी खराब हो जाती सारा का सारा दोष भी आप पर ही आता, खैर जिसकी कुण्डली में मंगल दोष है उसका अमंगल कैसे हो सकता है भाई मंगल अर्थात कल्याण तो दोषी कैसे होगा !
बाबू जी मुस्कुराने लगे कारण वह मुझे बचपन से जानते थे वह बोले अच्छा अब कम से कम ये तो बताइये मै क्या करूं ?
मैने कहा आप आज ड्राइवर के साथ चिडियाघर जाईये और बंदरों की दावत करिये !
शाम को उनका फ़ोन आया तो कहने लगे सभी घर के लोगों को भी पूरी घटना बतादी कारण चीडियाघर जाने की बात से आखिर बात चली और सभी को बता दी और आज चिडियाघर में मंगल देव के दूतों अर्थात बन्दरॊं की दावत की,,,,,,,,,,,
अब आप ही बताइये प्रभू को जिसका कल्यांण करना है तो वो कैसे भी हो होगा !

मेरा यहां कहने का तात्पर्य सिर्फ़ इतना है कि किसी भी कुण्डली के किसी भाव में किसी ग्रह के स्थित होने से ना तो कोई ग्रह शुभ होता है ना अशुभ !
शुभ और अशुभ का मूल्यांकन करने के लिये ये देखना अत्यंन्त आवस्यक है कि ग्रह किस भाव का स्वामी है तथा अपने स्वामित्व भाव से कितने अंशों के अन्तर पर उस भाव में आकर स्थित हुआ है, तथा ग्रह का मनोवैज्ञानिक स्वभाव एंव चरित्र क्या है अब ग्रह जहां बैठा है कम से कम यह तो मूल्यांकन करना चाहिये कि जिस स्थान अर्थात राशि/नक्षत्र में बैठा है उस क्षेत्र की ऊर्जा का स्वभाव चरित्र क्या है अर्थात ग्रह-राशि-नक्षत्र तीनों के मनोवैज्ञानिक स्वभाव चरित्र के समन्वय के आधर पर ही कोई फ़लादेश करना चाहिये, ये आवश्यक नहीं कि जो हमें दिख रहा है वह प्रमाणिक तौर पर सत्य है, इसलिये सूक्ष्म तरीके से अध्यन तथा मूल्यांकन करने के पश्चात ही कुछ कहना चाहिये !
अन्यथा किसी त्रुटी का फ़ल ज्योतिष को भुगतना ही पडेगा ! कारण जातक के साथ तो वही होगा जो ग्रह कह रहे हैं !