कालसर्प का भूत आज ज्योतिष जगत में बार उपद्रव मचा रहा है !
ज्योतिषी इसे पैदा भो कर सकते और इसे समाप्त भी कर सकते हैं !
पर एक बात समझ में नहीं आती कि मैं भी ज्योतिष १९८६ से पढ़ रहा हूँ मैंने आज तक किसी भी प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों में इसका उल्लेख नहीं पढ़ा हो सकता है प्राचीन विद्वान इस योग के बारे मं न जानते हों !
भैया बिना भय के यजमान दछिना भी तो नहीं देता है पर दछिना के लिए कौन कौन से और नए योग पैदा होने वाले हैं पता नहीं, ये पेट बार पापी है रोटी बरी चोर है क्या क्या करा रही है
वेद विद्या के लिए कहते हैं " सा विद्या, या विमुक्तये"
आपका :-
आचार्य सुशील अवस्थी "प्रभाकर"
ज्योतिष साधक एवं सेवक
ज्योतिष जगत में आज नक्षत्रों का चलन सिर्फ मुहूर्त निर्धारण तक ही सीमित हो गया है, ज्योतिषी राशियों के आधार पर ही फलादेश कर रहे है नतीजा फ़लादेश असफल हो रहे हैं आप वैदिक नक्षत्रीय ज्योतिष के मध्यम से आप अपने ज्योतिष समस्या समाधान , जन्म कुण्डली विवेचना, मंगल दोष परिक्षण, कालसर्प दोष परिक्षण, विवाह हेतु वर-वधू की कुण्डली का वैदिक मेलापक, विवाह कैसे कैसा और कब , नौकरी कैसी और कब, कुण्डली के अनुसार करे व्यवसाय का चयन, व्यवसायिक शिक्षा किस क्षेत्र मे जाने हमारी वेब साइट है astroscientist.weebly.com
सोमवार, 1 फ़रवरी 2010
विवाह और मंगल दोष कल वास्तविकता
विवाह और मंगल दोष की वास्तविकता
मंगल दोष से आज समाज में सबसे बरी ज्वलंत समस्या बन गई है लगभग हर दूसरा अभिवावक परेशान हैं कारन सिर्फ इतना सा है की किसी ज्योतिषी ने उनकी अविवाहित बेटी या बेटे की कुंडली में मंगल दोष कह दिया है ! यहाँ तक की आज बचे का जन्म होता है तो लड़का हो या लड़की अभिभावक सबसे पहले ज्योतिषी से यही पूछते हैं की बचे की कुंडली में मंगल दोष तो नहीं है ! समाज में मंगल दोष के बारे में जो भी भ्रान्ति फैली है उसका उत्तरदायी कौन है, क्या है यह मंगल दोष ?
सर्वप्रथम यह जानने की आवस्यकता है की आखिरकार मंगल है क्या - मंगल देवताओं का सेनापति है उर्जा का कारक है भूमि, भवन का कारक है मंगल का अर्थ है कल्याण तो फिर वह दोष कैसे दे सकता है !
सर्वप्रथम यह देखना चाहिए की मंगल किस भाव का स्वामी है कहाँ स्थित है किस नशत्र में स्थित है तथा उस नशत्र का स्वामी किस भाव का मालिक है और कहाँ स्थित है तथा मंगल का द्रष्टि प्रभाव कहाँ कहाँ है और वह शुभ अशुब कैसा है अर्थात जब तक यह सिद्ध न हो जाये की मंगल अशुभकारक है तब तक ज्योतिषी को यह नहीं कहना चाहिए की जातक मंगली है !
आज समाज में ज्योतिष का प्रचार प्रसार आवस्यकता से अधिक बढ़ गया है तथा ज्योतिष के विद्यालयों की संख्या दिनों दिन बढती जा रही है जो मात्र चार, छह माह में ज्योतिष का प्रमाण पत्र दे कर झोला छाप ज्योतिषियों की फौज तैयार कर रहे है जो अपने पेट पलने के चक्कर में, अधिक धन अर्जन करने के लिए किसी की भी कुंडली में कोई भी दोष बता देते है कारन उन्होंने ज्योतिष ज्ञान प्राप्त करने के लिए साधना तो की नहीं है !
सबसे अधिक आश्चर्य की बात तो यह है की लग्न के आलावा चन्द्र लग्न, शुक्र लग्न, सूर्य लग्न से भी अगर उक्त भावों में मंगल स्थित हो तो मंगल दोष बताया जाता है इसका मतलब यह हुआ की विश्व में पैदा होने वाले लगभग ७५% लोग मंगली हैं !
स्थिति सबसे अधिक हास्यास्पद तब हो जाती है जब मंगल दोष के शमन के नाम पर ढगहाई होने लगती है मंगल के शमन के करने वाले इन कथाकथित व्यापारी ज्योतिषियों से मै यह पूछना चाहता हूँ की ज्योतिष के ग्रंथों में वर्णित कई ऐसे योग हैं - बुध-आदित्य योग, गजकेशरी योग आदि के कुंडली में मोजूद होने के बावजूद जातक को दोनों समय भोजन नशीब नहीं हो रहा है क्या कभी किसी ज्योतिषी ने इन निष्प्रभावी योगों को प्रभावी करने के लिए कोई भी उपाय किये या करवाए हैं नहीं क्यों की
जिसके पास खाने को नहीं है वह उपाय अनुष्ठान आदि के लिए इन्हे धन नहीं दे सकता !
न्यूटन का तीसरा नियम है की हर क्रिया की विपरीत प्रतिक्रिया होती है अर्थात मै व्यावसायिक ज्योतिषियों को यह सलाह देना चाहता हूँ की जनता का मार्ग दर्शन करना चाहिए उनका दोहन नहीं, जनता हमारा सम्मान करती रहे इसके लिए सबसे अवश्यक यह है की हम यह समझ लें की धन जीवन के लिए अवश्यक जरुर है पर धन ही सब कुछ नहीं है ! ज्योतिषी को अध्यात्मिक विचारवान होना चाहिए ! वेद कहते है की "सा विद्या या विमुक्तये" अर्थात विद्या वह है जो बन्धनों से मुक्ति प्रदान करे और विद्वान वह है जो विद्या के द्वारा जनता को भय मुक्त करे, न की उनका दोहन करें !
निष्कर्ष यह है की मंगल की स्थिति से यह तय नहीं होता की मंगल दोष प्रदान कर रहा है इसलिए मंगल दोष के लिए किसी विद्वान ज्योतिषी से ही परामर्श लेना चाहिए जिससे यह जानकारी हो सके की यदि मंगल दोष है भी तो वह अपना प्रभाव जीवन में कब और कितना देगा !
आपका मित्र :-
आचार्य सुशील अवस्थी "प्रभाकर"
ज्योतिष साधक/सेवक
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