कालसर्प का भूत आज ज्योतिष जगत में बार उपद्रव मचा रहा है !
ज्योतिषी इसे पैदा भो कर सकते और इसे समाप्त भी कर सकते हैं !
पर एक बात समझ में नहीं आती कि मैं भी ज्योतिष १९८६ से पढ़ रहा हूँ मैंने आज तक किसी भी प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों में इसका उल्लेख नहीं पढ़ा हो सकता है प्राचीन विद्वान इस योग के बारे मं न जानते हों !
भैया बिना भय के यजमान दछिना भी तो नहीं देता है पर दछिना के लिए कौन कौन से और नए योग पैदा होने वाले हैं पता नहीं, ये पेट बार पापी है रोटी बरी चोर है क्या क्या करा रही है
वेद विद्या के लिए कहते हैं " सा विद्या, या विमुक्तये"
आपका :-
आचार्य सुशील अवस्थी "प्रभाकर"
ज्योतिष साधक एवं सेवक
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें