क्रिष्णामूर्ति पद्धति, भारतीय वैदिक ज्योतिष पद्धति का ही विकसित स्वरूप है इस पद्धति मे सर्वाधिक महत्व नक्षत्रों को ही प्रदान किया जाता है ग्रह किस राशि मे स्थित है इससे अधिक पहत्वपूर्ण है कि ग्रह किस नक्षत्र में स्थित है जव कि वर्तमान समय मे ज्योतिष जगत मे नक्षत्रों को फ़लादेश मे महत्व नहीं दिया जाता है ! ज्योतिष जगत में आज भी जब किसी बच्चे का जन्म होता है तो उस के शुभ अशुभ का ग्यान करने के लिये जन्म नक्षत्र को ही आधार मानकर फ़लादेश किया जाता है ! आज भी किसी भी प्रकार के मुहूर्त निर्धारण मे नक्षत्रों को ही महत्व दिया जाता है परन्तु कुण्डली के फ़लादेश के लिये नक्षत्रों को नकारा जाता है जब कि भविष्य की घटनाओं के कथन एंव काल निर्धारण में पूर्णतः नक्षत्र अधारित दशा पद्धति विंशोत्तरी दशा का ही प्रयोग किया जाता है !
स्वर्गीय क्रिष्णमूर्ति जी ने विश्व की भविष्य फ़लकथन की विधाओं का अध्यन किया था , अपने गहन शोध एंव अध्यन के पश्चात यह सिद्ध कर दिया कि ज्योतिष में सर्वाधिक महत्व नक्षत्र का ही है, ग्रह अपने दशा काल में अपने नक्षत्रेश के द्वारा सूचित फ़लों को प्रदान करता है
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
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