शनिवार, 10 अप्रैल 2010

ज्योतिष शतप्रतिशत विज्ञानं है !


आज हम देख रहे है की समाज में ज्योतिष की लोकप्रियता बढती जा रही है, मांग और पूर्ति का भी एक सिधांत है की जब किसी चीज की मांग ज्यादा बढ़ जाती है तो वहां कुछ न कुछ गलत होने लगता है आज हमें सोचना चाहिए की माता सीता का हरण करने के लिए रामण को एक साधू का भेष धारण करना पड़ा था आखिर इसलिए ही की साधू के प्रति माता सीता आस्था रखती थी और आसानी से रामण उनकी भावनात्मक इस्थितियों का गलत इस्तेमाल कर उनका हरण कर लंका ले जाने में कामयाब हो जायेगा !


ठीक इसी प्रकार आज जब ज्योतिष का प्रचार - प्रसार तथा लोकप्रियता बढ़ रही है तो कुछ लोग धन के लोभवश ज्योतिष के अधकचरे ज्ञान का उपयोग कर स्वयं तो अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं पर ज्योतिष जो वैदिक ऋषियों तथा वेदों का अमूल्य ज्ञान है उसकी लोक्रियता तथा विस्वसनीयता को छति हो रही है !

आज समाज में यह देखने को मिलता है की वैज्ञानिक तथा अन्य लोग देश के  विख्यात ज्योतिषियों से टीवी के प्रोग्रामो में चुनौती देते हैं की वह ज्योतिष की विस्वसनीयता सिद्ध करें टीवी प्रोग्राम में पुरे जनमानस के सामने ज्योतिषी यह सिद्ध नहीं कर पते की ज्योतिष विज्ञानं है क्यों कारण सिर्फ इतना सा है की उनके ज्ञान पर भौतिकता और पर्दा पड़ा है !

ज्योतिष धन उपार्जन का साधन हो सकती है पर ज्योतिष साधना का विषय है और साधना वातानुकूलित कमरों में रहकर नहीं हो सकती टीवी पर प्रोग्राम देखकर इन ज्योतिषियों को तो सरम नहीं आइ होगी पर प्रोग्राम देखकर मुझे या जो भी ज्योतिष प्रेमी हैं उनको जरुर दर्द हुआ होगा होना भी चाहिए , इस जगत में कोई भी विज्ञानं पूर्ण नहीं है पूर्ण सिर्फ परमात्मा है तो फिर ज्योतिष विज्ञानं की ही प्रमाणिकता क्यों मांगी जा रही है कारण ये जो भी कथाकथित ज्योतिष के विद्वान हैं सस्ती लोकप्रियता हाशिल करने के चक्कर में राशिफल , भाविश्यवानियाँ टीवी , पत्रिकाओं, अखबारों आदि में करते है हल्दी का रंग मालूम नहीं है पंसारी बने धूम रहे है दस्तखत करना आता नहीं कलक्टर बनाने का फार्म भर रहे हैं !

अरे भाई एक राशी के करोणों लोग हैं आप एक बांश से सभी को हांके जा रहे हो जोकरई करना अब भी बंद कर दो अपना नहीं तो कम से कम जिस ज्योतिष से तुम्हारी रोटी चल रही है उसकी ही खातिर सही अरे भाई अंडा खाओ तो खाओ मुर्गी पर तो तरस खाओ प्यारे !

अब रही बात ज्योतिष की तो भाई एक अस्पताल में एक ही मर्ज  के पाँच मरीज भर्ती हुए एक ही कमरे में भर्ती किये गए एक ही डाक्टर  इलाज करता  है परिणाम एक मरीज दो दिन में , दूसरा तीन दिन में , चौथा चार दिन में , पांचवा ठीक नहीं होता ओपरेशन करना पड़ता है फिर भी मर जाता है क्या अस्पताल की विस्वसनीयता पर या डाक्टर की विस्वसनीयता पर या दवाइयों की विस्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगाना चाहिए प्रत्येक मरीज की अपनी रोग प्रतिकारक सक्तियाँ भिन्न हैं टिक उसी तरह ज्योतिष भी है