मंगलवार, 11 मई 2010

नक्षत्र हैं क्या ?


 नक्षत्र हैं क्या ?

आज समाज में सबसे बड़ा प्रश्न यह है की आखिर  ज्योतिष है क्या तो सबसे पहले मै यह स्पष्ट करना चाहूँगा की ज्योतिष कोई जादू, तंत्र, सिद्धि,टोना टोटका आदि नहीं है यह एक गणितीय विज्ञानं है जिसके निश्चत सिद्दांतो द्वारा हम ब्रम्हांड की ईश्वरीय रचित उस नियंत्रण प्रणाली को समझ कर भविष्य की घटनाओ की कल्पना कर सकते है अब समझना यह है की ग्रह, नक्षत्र, उपग्रह आदि है क्या इनकी क्या जरुरत थी !
परमात्मा अर्थात वह शक्ति जिसने इस ब्रम्हांड की रचना की, किसी भी तंत्र, समूह या प्रणाली की रचना करना आसान है उसको नियंत्रित करना उत्यंत कठिन है उसके लिए ही परमात्मा को सर्वप्रथम इस ब्रम्हांड की रचना करनी पड़ी जो एक ऐसा तंत्र/प्रणाली थी जिसके अपने निश्चित सिद्धांत है जैसे ब्रम्हांड के बारे में कहा जाता है की अनेको ब्रम्हांड है होंगे पर अभी हम अपनी जिस आकाश गंगा में हम स्थित है उस ब्रम्हांड की बात करेंगे अन्यथा हम अपने विषय से भटक जायेंगे !

जैसा अभी हम ब्रम्हांड का जिक्र कर रहे थे ब्रम्हांड का मुख्य नियंत्रक या केंद्र सूर्य है कारण सूर्य जिसे हम ज्योतिष में ग्रह कहते है पर वह वास्तव में एक तारा है जो इस ब्रम्हांड के केंद्र में स्थित है तथा अपनी उर्जा के द्वारा ही अपने चारो ओर स्थित ग्रह पिंड आदि को अपनी उर्जा के द्वारा नियंत्रित कर रहा है तथा अन्य सभी ग्रह उपग्रह उसके चारो ओर परिक्रमा या परिभ्रमण अपने-अपने निर्धारित परिभ्रमण पथो पर एक निश्चित या निर्धारित गति से कर रहे है अब प्रश्न यह उठता है की आखिर नक्षत्र क्या है?

आइये हम इसे समझे की सबसे पहले तो ब्रम्हांड के केंद्र में सूर्य है उसके चारो ओर वृत्ताकार परिधि में अपने अपने निर्धारित भ्रमण पथो पर सभी अन्य ग्रह चक्कर लगा रहे है अर्थात मानिये की ब्रम्हांड एक संतरा है, संतरे में जहाँ बीज होते है वहां सूर्य है बीज से छिलके के मध्य के भाग में सभी ग्रह स्थित है तथा संतरे में बाहर के हिस्से में जहाँ छिलका होता है उस बहरी भाग में नक्षत्र स्थित है अब प्रश्न यह उठता है की आखिरकार नक्षत्र है क्या? संतरे के बाहर के भाग के चारो ओर जो तारे स्थित है उन्ही तारो के समूहों को वैदिक विद्यानो ने सत्ताईस सामान भागों में ठीक उसी प्रकार विभाजित किया जैसे एक संतरे की सत्ताईस फांके हों वही नक्षत्र है !

जैसा की सभी ने पढ़ा होगा की आकाश में सूर्य से भी बड़े बड़े अनेको सूर्य 
है (सूर्य अर्थात तारा जिसका अपना प्रकाश हो) जिस प्रकार सूर्य इस ब्रम्हांड में स्थित ग्रहों को नियंत्रित कर रहा है ठीक उसी प्रकार नक्षत्र भी अपने प्रकाश एवं उर्जा द्वारा ग्रहों पर अधिकार अथवा नियंत्रण रखते हैं !

अब प्रश्न यह उठता है की आज ज्योतिष जगत में लगभग सौ में से पिच्चानवे ज्योतिषी राशियों के आधार पर ही फलकथन करते है करे भी क्यों न भाई जो पद्धति प्रचिलित होगी उसी के ज्ञान होगा उसी के आधार पर काम करेंगे !

आज जब बालक का जन्म होता है तो सर्वप्रथम शुभाशुभ के ज्ञान के लिए नक्षत्र देखते है जब उस बालक का कोई संस्कार होता है तब भी नक्षत्र ही देखते है जब शादी की बात आती है तब वर-बधू का मेलापक करने के लिए नक्षत्र ही देखते है जब शादी बिदाई गृहप्रवेश की बात चलती है तब भी नक्षत्र को ही आधार माना जाता है और अंत में जब मृत्यु होती तब भी पंचक आदि नक्षत्र के आधार पर ही देखते है पर जब भी कुंडली के फलादेश करने की पद्धति की बात आती है तो नक्षत्र को कोई महत्व नहीं दिया जाता आखिरकार ऐसा क्यों ?

इसका मुख्य कारण है की मुग़ल काल में संस्कृत विद्यालयों का ध्वंश प्राचीन ग्रंथो का जला दिया जाना तथा उस काल के बाद जिन विद्वानों के पास प्राचीन वैदिक ग्रन्थ थे उन्होंने उनको अपने तक या अपने परिवार तक ही सिमित रखा जैसे आज भी भृगु - संहिता, नाड़ी ज्योतिष ग्रन्थ आदि आज ज्योतिष के विद्वानों में अन्य विषय के विद्वानों की अपेछा अधिक अहंकार एवं ज्ञान को दुसरो से छुपाकर रखने की प्रवत्ति है जिस कारण ही नक्षत्र आधारित ज्योतिष ज्ञान लुप्त हो गया था !

राशियों के बारे, बिबिलोनिया आदि की सभ्यता से राशियों का प्रचलन भारत आया था अन्यथा कल्पना कीजिये की जिस भारत को विश्व गुरु कहा जाता हो वह राशियो के आधार पर फलकथन किया जाये ,ज्योतिष के योगो की बात की जाये ! आगे भी नक्षत्र पर चर्चा की नक्षत्र कैसे प्रभाव आदि रखते है इत्यादि पर विस्तार से चर्चा हम ब्लॉग पर करेंगे तथा यदि किसी को भी उक्त विषय पर कोई भी शंका हो तो शंका शमाधन के लिए मैशेज भेज सकते है !


मंगलवार, 4 मई 2010

भारतीय ज्योतिष में कृष्णमूर्ति जी का योगदान


भारतीय ज्योतिष में कृष्णमूर्ति जी का अतुलनीय योगदान है कृष्णमूर्ति जी इस बात को समझ गए थे की ज्योतिष के फलादेश में नक्षत्र का क्या महत्व है वास्तव में यदि बाल्मीकि रामायण या अन्य प्राचीन ग्रंथो में नक्षत्र    
का ही उल्लेख है !

जब बच्चे का जन्म होता है नक्षत्र ही देखा जाता है जब कोई भी संस्कार होता है नक्षत्र ही देखते है फिर फलादेश करते समय राशी ही क्यों ?

भारतीय ज्योतिष में यदि किसी विद्वान ने वास्तव में ज्योतिष सिद्धांतो की खोज के लिए कम किया है तो वो 
कृष्णमूर्ति जी ही है उन्होंने यह विचार किया की जब पाँच मिनट के अन्तराल में जन्म लेने वाले दो बच्चों के जीवन में , लग्न एक तथा कुंडली एक सी होने के बावजूद भी जबरदस्त अंतर होते है उनकी प्रक्रति अलग अलग होती है दोनों की पढाई , नौकरी , शादी सभी में अंतर , अकिर इसका कारण क्या है तो उन्होंने इस पर काफी खोज की तब वह इस निष्कर्ष पर पहुचे की सारा कुछ  नक्षत्र पर ही निर्भर करता है !

उन्होंने इसके लिए विंशोत्तरी दशा  को आधार माना जिस प्रकार विंशोत्तरी दशा में ग्रहों को दशा वर्ष निर्धारित है उसी आधार पर उन्होंने प्रतेक नक्षत्र  को  नो भागो  विभाजित किया इसके लिए जिस प्रकार  नवांश कुंडली का वैदिक महत्त्व  है उसको ही आधार मानकर जब नक्षत्र को विभाजित  कर फलादेश किया गया तो जबर्दुस्त सफलता  प्राप्त हुई उन्होंने अपनी शोध को सम्पूर्ण ज्योतिष समाज के सामने रखा पर सभी उनके विचारो से सहमत नहीं हुए !

आज जब ज्योतिष का प्रचार प्रसार अपनी चरम ऊँचाइयों पर है तब कृष्णमूर्ति पद्धति के आधार पर फलकथन करने वलून की संख्या में भी जबर्दुस्त ब्रद्धि हुई है कारण इस पद्धति में कोई भी ग्रह किसी राशी में उंच नीच नहीं होता , गढ़ जिस नक्षत्र में स्थित होता है उस नक्षत्र स्वामी ग्रह के स्थित एवम स्वामित्व वाले भाव के अनुरूप ही फल प्रदान करता है !

कृष्णमूर्ति पद्धति में भाव का निर्धारण उसके प्रारंभिक बिंदु से किया जाता है , कृष्णमूर्ति  जी के अनुसार ग्रह किस भाव में है किस राशी में है इस सबसे ज्यादा महत्व इस बात का है की ग्रह किस नक्षत्र में स्थित है !





सोमवार, 3 मई 2010

विंशोत्तरी दशा

 विंशोत्तरी दशा ज्योतिष जगत में भविष्य फलादेश की सर्वाधिक प्रचलित दशा मानी जाती है !

महान ऋषि पराशर ने इस दशा को सर्वाधिक महत्त्व दिया था , परन्तु आज  भी ज्योतिष जगत में इसका प्रयोग करने वाले ज्योतिषी जो इसका प्रयोग कर रहे हैं इस बात का जबाब नहीं दे पाते कि इस दशा पद्धति में जो नौ ग्रहों को दशा वर्ष निर्धारित किये गए हैं जैसे शुक्र को बीस वर्ष, मंगल तथा केतु को सात वर्ष, सूर्य को 6 वर्ष, चन्द्रमा  को दस वर्ष, गुरु को सोलह वर्ष, शनि को उन्नीस वर्ष, राहु को अठारह वर्ष, बुध को सत्रह वर्ष !

मेरा सिर्फ एक ही सवाल है कि आखिरकार वैदिक ऋषियों ने किस आधार पर एन ग्रहों को दशा वर्ष निर्धारित किये थे इसका आधार क्या था   !

आज  जब ज्योतिष को इतना व्यावसायिक बना दिया गया है बड़ी बड़ी साइटें ज्योतिष फलादेश दे रही हैं बड़ी बड़ी संस्थाए ज्योतिष के कोर्स करा रही हैं परन्तु इस प्रश्न का जबाब नहीं दे पा रहे हैं !

वास्तविकता यही है कि आज ज्योतिष जगत में सिर्फ धन के लिए ही कम हो रहा है वैदिक ऋषियों के सिधान्तों के आधार को जानने के लिए कोई भी प्रयास  नहीं हो रहे हैं यही कारण है कि आज ज्योतिष के ऊपर प्रश्न चिन्ह लग रहे हैं !

ज्योतिष  एक सम्पूर्ण विज्ञानं है इसमे कोई प्रश्न चिन्ह नहीं लगा रहा पर ज्योतिषी समाज में अल्प ज्ञानी विद्वानों पर जरुर !