मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

शुक्र अष्टोत्तरशतनामावलिः

** शुक्र अष्टोत्तरशतनामावलिः **


शुक्र आज के भौतिक जगत में सबसे महत्वपूर्ण ग्रह है जो मनुष्य के
जीवन मे भौतिक सुख सुविधाओं का कारक है तथा सुन्दरता, एश्वर्य, सन्गीत,
विवाह, मानसिक सन्तुष्टि, तथा प्रेम-सम्बन्धो आदि को दर्शाता है !
कुण्डली मे शुक्र की अशुभ स्थित अत्यंत दुख दायी होती है !
जिसके परिणाम स्वरूप विवाह मे विलम्ब जीवन साथी से तनाव तथा 
यौन रोग आदि जैसे कष्ट प्राप्त होते है !
शुक्र के अशुभ प्रभाव से मुक्ति हेतु इस स्त्रोत का श्रद्धा पूर्वक नित्य
पाठ करना कल्याणकारी है तथा भौतिक सुख दायक है यह अनुभव किया गया है !

** शुक्र अष्टोत्तरशतनामावलिः **

 
शुक्र बीज मन्त्र : - 
ॐ द्राँ द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः !!



ॐ शुक्राय नमः  !!१
ॐ शुचये नमः  !!२
ॐ शुभगुणाय नमः  !!३
ॐ शुभदाय नमः  !!४
ॐ शुभलक्षणाय नमः  !!५
ॐ शोभनाक्षाय नमः  !!६
ॐ शुभ्रवाहाय नमः !!७
ॐ शुद्धस्फटिकभास्वराय नमः !!८
ॐ दीनार्तिहरकाय नमः  !!९
ॐ दैत्यगुरवे नमः !!१०
ॐ देवाभिवन्दिताय नमः  !!११
ॐ काव्यासक्ताय नमः !!१२
ॐ कामपालाय नमः  !!१३
ॐ कवये नमः !!१४
ॐ कल्याणदायकाय नमः !!१५
ॐ भद्रमूर्तये नमः !!१६
ॐ भद्रगुणाय नमः !!१७
ॐ भार्गवाय नमः !!१८
ॐ भक्तपालनाय नमः !!१९
ॐ भोगदाय नमः !!२०
ॐ भुवनाध्यक्षाय नमः !!२१
ॐ भुक्तिमुक्तिफलप्रदाय नमः !!२२
ॐ चारुशीलाय नमः !!२३
ॐ चारुरूपाय नमः !!२४
ॐ चारुचन्द्रनिभाननाय नमः !!२५
ॐ निधये नमः !!२६
ॐ निखिलशास्त्रज्ञाय नमः !!२७
ॐ नीतिविद्याधुरंधराय नमः !!२८
ॐ सर्वलक्षणसंपन्नाय नमः !!२९
ॐ सर्वापद्गुणवर्जिताय नमः !!३०
ॐ समानाधिकनिर्मुक्ताय नमः !!३१
ॐ सकलागमपारगाय नमः !!३२
ॐ भृगवे नमः !!३३
ॐ भोगकराय नमः !!३४
ॐ भूमिसुरपालनतत्पराय नमः !!३५
ॐ मनस्विने नमः !!३६
ॐ मानदाय नमः !!३७
ॐ मान्याय नमः !!३८
ॐ मायातीताय नमः !!३९
ॐ महायशसे नमः !!४०
ॐ बलिप्रसन्नाय नमः !!४१
ॐ अभयदाय नमः !!४२
ॐ बलिने नमः !!४३
ॐ सत्यपराक्रमाय नमः !!४४
ॐ भवपाशपरित्यागाय नमः !!४५
ॐ बलिबन्धविमोचकाय नमः !!४६
ॐ घनाशयाय नमः !!४७
ॐ घनाध्यक्षाय नमः !!४८
ॐ कम्बुग्रीवाय नमः !!४९
ॐ कलाधराय नमः !!५०
ॐ कारुण्यरससंपूर्णाय नमः !!५१
ॐ कल्याणगुणवर्धनाय नमः !!५२
ॐ श्वेताम्बराय नमः !!५३
ॐ श्वेतवपुषे नमः !!५४
ॐ चतुर्भुजसमन्विताय नमः !!५५
ॐ अक्षमालाधराय नमः !!५६
ॐ अचिन्त्याय नमः !!५७
ॐ अक्षीणगुणभासुराय नमः !!५८
ॐ नक्षत्रगणसंचाराय नमः !!५९
ॐ नयदाय नमः !!६०
ॐ नीतिमार्गदाय नमः !!६१
ॐ वर्षप्रदाय नमः !!६२
ॐ हृषीकेशाय नमः !!६३
ॐ क्लेशनाशकराय नमः !!६४
ॐ कवये नमः !!६५
ॐ चिन्तितार्थप्रदाय नमः !!६६
ॐ शान्तमतये नमः !!६७
ॐ चित्तसमाधिकृते नमः !!६८
ॐ आधिव्याधिहराय नमः !!६९
ॐ भूरिविक्रमाय नमः !!७०
ॐ पुण्यदायकाय नमः !!७१
ॐ पुराणपुरुषाय नमः !!७२
ॐ पूज्याय नमः !!७३
ॐ पुरुहूतादिसन्नुताय नमः !!७४
ॐ अजेयाय नमः !!७५
ॐ विजितारातये नमः !!७६
ॐ विविधाभरणोज्ज्वलाय नमः !!७७
ॐ कुन्दपुष्पप्रतीकाशाय नमः !!७८
ॐ मन्दहासाय नमः !!७९
ॐ महामतये नमः !!८०
ॐ मुक्ताफलसमानाभाय नमः !!८१
ॐ मुक्तिदाय नमः !!८२
ॐ मुनिसन्नुताय नमः !!८३
ॐ रत्नसिंहासनारूढाय नमः !!८४
ॐ रथस्थाय नमः !!८५
ॐ रजतप्रभाय नमः !!८६
ॐ सूर्यप्राग्देशसंचाराय नमः !!८७
ॐ सुरशत्रुसुहृदे नमः !!८८
ॐ कवये नमः !!८९
ॐ तुलावृषभराशीशाय नमः !!९०
ॐ दुर्धराय नमः !!९१
ॐ धर्मपालकाय नमः !!९२
ॐ भाग्यदाय नमः !!९३
ॐ भव्यचारित्राय नमः !!९४
ॐ भवपाशविमोचकाय नमः !!९५
ॐ गौडदेशेश्वराय नमः !!९६
ॐ गोप्त्रे नमः !!९७
ॐ गुणिने नमः !!९८
ॐ गुणविभूषणाय नमः !!९९
ॐ ज्येष्ठानक्षत्रसंभूताय नमः !!१००
ॐ ज्येष्ठाय नमः !!१०१
ॐ श्रेष्ठाय नमः !!१०२
ॐ शुचिस्मिताय नमः !!१०३
ॐ अपवर्गप्रदाय नमः !!१०४
ॐ अनन्ताय नमः !!१०५
ॐ सन्तानफलदायकाय नमः !!१०६
ॐ सर्वैश्वर्यप्रदाय नमः !!१०८
ॐ सर्वगीर्वाणगणसन्नुताय नमः !!
!!  इति शुक्र अष्टोत्तरशतनामावलिः सम्पूर्णम्  !!

कष्ट विमोचन मंगल स्तोत्र


कष्ट विमोचन मंगल स्तोत्र

मंगल देवताओं का सेनापति है!
 मंगल ग्रह मनुष्य मे साहस, वीरता, पराक्रम एवम शक्ति का कारक है ! 
इस ग्रह के यदि शुभ प्रभाव हों तो जातक नेत्रत्व करने वाला परक्रमी होता है !
यदि मंगल अशुभकारक हो तो फ़ोडा, ज्वर, मष्तिष्क ज्वर, अल्सर आदि रोग प्रदान करता है !
मंगल के अशुभ प्रभाव से जातक क्रोध तथा आवेश में अपने जीवन मे अशान्ति स्थापित 
करता है ! मंगल के अशुभ प्रभाव वश दुर्घटनाएं आदि भी होती रहती है !

श्री स्कन्द पुराण में वर्णित मंगल स्त्रोत का नित्य श्रद्धा पूर्वक पाठ करने से मंगल के
अशुभ प्रभावों से मुक्ति एवम शुभ प्रभाव की ब्रद्धि होती है ! 

!! कष्ट विमोचन मंगल स्तोत्र !!

मंगलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रद: !
स्थिरामनो महाकाय: सर्वकर्मविरोधक: !! 
लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां। कृपाकरं!
वैरात्मज: कुजौ भौमो भूतिदो भूमिनंदन:!!
धरणीगर्भसंभूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्!
कुमारं शक्तिहस्तं च मंगलं प्रणमाम्यहम्!!
अंगारको यमश्चैव सर्वरोगापहारक:!
वृष्टे: कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रद:!!
एतानि कुजनामानि नित्यं य: श्रद्धया पठेत्!
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्रुयात् !!
स्तोत्रमंगारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभि:!
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्!!
अंगारको महाभाग भगवन्भक्तवत्सल!
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय:!!
ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यव:!
भयक्लेश मनस्तापा: नश्यन्तु मम सर्वदा!!
अतिवक्र दुराराध्य भोगमुक्तजितात्मन:!
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्!!
विरञ्चि शक्रादिविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा!
तेन त्वं सर्वसत्वेन ग्रहराजो महाबल:!!
पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गत:!
ऋणदारिद्रयं दु:खेन शत्रुणां च भयात्तत:!!
एभिद्र्वादशभि: श्लोकैर्य: स्तौति च धरासुतम्!


महतीं श्रियमाप्रोति ह्यपरा धनदो युवा:!!
!! इति श्रीस्कन्दपुराणे भार्गवप्रोक्त ऋणमोचन मंगलस्तोत्रम् !!

बुध अष्टोत्तरशतनामवलिः , बुध स्तुति के १०८ मन्त्र



बुध ग्रह के अशुभ प्रभाव से मुक्ति के लिये प्रतिदिन इन मन्त्रो का पाठ
करना चाहिये !
बुध ग्रह के अशुभ प्रभाव से मुख्यतः मस्तिष्क के रोग, पगलपन, पढाई मे
अरुचि, हकलाहट आदि मे आश्चर्य जनक लाभ इस स्त्रोत पाढ से प्राप्त होते है 
यह प्रयोग अनुभव किया हुआ है इसमे तनिक भी सन्देह नहीं है !


!! बुध अष्टोत्तरशतनामवलिः !!
बुध बीज मन्त्र - ॐ ब्राँ ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः !!


ॐ बुधाय नमः !!१
ॐ बुधार्चिताय नमः !!२
ॐ सौम्याय नमः !!३
ॐ सौम्यचित्ताय नमः !!४
ॐ शुभप्रदाय नमः !!५
ॐ दृढव्रताय नमः !!६
ॐ दृढफलाय नमः !!७
ॐ श्रुतिजालप्रबोधकाय नमः !!८
ॐ सत्यवासाय नमः !!९
ॐ सत्यवचसे नमः !!१०
ॐ श्रेयसां पतये नमः !!११
ॐ अव्ययाय नमः !!१२
ॐ सोमजाय नमः !!१३
ॐ सुखदाय नमः !!१४
ॐ श्रीमते नमः !!१५
ॐ सोमवंशप्रदीपकाय नमः !!१६
ॐ वेदविदे नमः !!१७
ॐ वेदतत्त्वाशाय नमः !!१८
ॐ वेदान्तज्ञानभास्कराय नमः !!१९
ॐ विद्याविचक्षणाय नमः !!२०
ॐ विदुषे नमः !!२१
ॐ विद्वत्प्रीतिकराय नमः !!२२
ॐ ऋजवे नमः !!२३
ॐ विश्वानुकूलसंचाराय नमः !!२४
ॐ विशेषविनयान्विताय नमः !!२५
ॐ विविधागमसारज्ञाय नमः !!२६
ॐ वीर्यवते नमः !!२७
ॐ विगतज्वराय नमः !!२८
ॐ त्रिवर्गफलदाय नमः !!२९
ॐ अनन्ताय नमः !!३०
ॐ त्रिदशाधिपपूजिताय नमः !!३१
ॐ बुद्धिमते नमः !!३२
ॐ बहुशास्त्रज्ञाय नमः !!३३
ॐ बलिने नमः !!३४
ॐ बन्धविमोचकाय नमः !!३५
ॐ वक्रातिवक्रगमनाय नमः !!३६
ॐ वासवाय नमः !!३७
ॐ वसुधाधिपाय नमः !!३८
ॐ प्रसन्नवदनाय नमः !!३९
ॐ वन्द्याय नमः !!४०
ॐ वरेण्याय नमः !!४१
ॐ वाग्विलक्षणाय नमः !!४२
ॐ सत्यवते नमः !!४३
ॐ सत्यसंकल्पाय नमः !!४४
ॐ सत्यबन्धवे नमः !!४५
ॐ सदादराय नमः !!४६
ॐ सर्वरोगप्रशमनाय नमः !!४७
ॐ सर्वमृत्युनिवारकाय नमः !!४८
ॐ वाणिज्यनिपुणाय नमः !!४९
ॐ वश्याय नमः !!५०
ॐ वाताङ्गाय नमः !!५१
ॐ वातरोगहृते नमः !!५२
ॐ स्थूलाय नमः !!५३
ॐ स्थैर्यगुणाध्यक्षाय नमः !!५४
ॐ स्थूलसूक्ष्मादिकारणाय नमः !!५५
ॐ अप्रकाशाय नमः !!५६
ॐ प्रकाशात्मने नमः !!५७
ॐ घनाय नमः !!५८
ॐ गगनभूषणाय नमः !!५९
ॐ विधिस्तुत्याय नमः !!६०
ॐ विशालाक्षाय नमः !!६१
ॐ विद्वज्जनमनोहराय नमः !!६२
ॐ चारुशीलाय नमः !!६३
ॐ स्वप्रकाशाय नमः !!६४
ॐ चपलाय नमः !!६५
ॐ जितेन्द्रियाय नमः !!६६
ॐ उदङ्मुखाय नमः !!६७
ॐ मखासक्ताय नमः !!६८
ॐ मगधाधिपतये नमः !!६९
ॐ हरये नमः !!७०
ॐ सौम्यवत्सरसंजाताय नमः !!७१
ॐ सोमप्रियकराय नमः !!७२
ॐ महते नमः !!७३
ॐ सिंहाधिरूढाय नमः !!७४
ॐ सर्वज्ञाय नमः !!७५
ॐ शिखिवर्णाय नमः !!७६
ॐ शिवंकराय नमः !!७७
ॐ पीताम्बराय नमः !!७८
ॐ पीतवपुषे नमः !!७९
ॐ पीतच्छत्रध्वजाङ्किताय नमः !!८०
ॐ खड्गचर्मधराय नमः !!८१
ॐ कार्यकर्त्रे नमः !!८२
ॐ कलुषहारकाय नमः !!८३
ॐ आत्रेयगोत्रजाय नमः !!८४
ॐ अत्यन्तविनयाय नमः !!८५
ॐ विश्वपवनाय नमः !!८६
ॐ चाम्पेयपुष्पसंकाशाय नमः !!८७
ॐ चारणाय नमः !!८८
ॐ चारुभूषणाय नमः !!८९
ॐ वीतरागाय नमः !!९०
ॐ वीतभयाय नमः !!९१
ॐ विशुद्धकनकप्रभाय नमः !!९२
ॐ बन्धुप्रियाय नमः !!९३
ॐ बन्धुयुक्ताय नमः !!९४
ॐ वनमण्डलसंश्रिताय नमः !!९५
ॐ अर्केशाननिवासस्थाय नमः !!९६
ॐ तर्कशास्त्रविशारदाय नमः !!९७
ॐ प्रशान्ताय नमः !!९८
ॐ प्रीतिसंयुक्ताय नमः !!९९
ॐ प्रियकृते नमः !!१००
ॐ प्रियभूषणाय नमः !!१०१
ॐ मेधाविने नमः !!१०२
ॐ माधवसक्ताय नमः !!१०३
ॐ मिथुनाधिपतये नमः !!१०४
ॐ सुधिये नमः !!१०५
ॐ कन्याराशिप्रियाय नमः !!१०६
ॐ कामप्रदाय नमः !!१०७
ॐ घनफलाश्रयाय नमः !!१०८
!!इति बुध अष्टोत्तरशतनामावलिः सम्पूर्णम् !!

बुध ग्रह को ज्योतिष मे विचार, सोच, विवेक, सूचना एवम लेखन आदि का कारक माना
जाता है कुण्डली मे बुध के नकारात्मक प्रभाव को कम एवम शुभ प्रभाव मे ब्रद्धि के लिये 
बुध के इन एक सौ आठ मन्त्रों का श्रद्धा से बुध देव का स्मरण करते हुए पाठ करने से 
बुध के अशुभ प्रभाव से मुक्ति एवम शुभ प्रभाव का लाभ प्राप्त होने लगता है !
||बुध अष्टोत्तरशतनामवलिः ||
बुध बीज मन्त्र -
ॐ ब्राँ ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः ||
ॐ बुधाय नमः ||
ॐ बुधार्चिताय नमः ||
ॐ सौम्याय नमः ||
ॐ सौम्यचित्ताय नमः ||
ॐ शुभप्रदाय नमः ||
ॐ दृढव्रताय नमः ||
ॐ दृढफलाय नमः ||
ॐ श्रुतिजालप्रबोधकाय नमः ||
ॐ सत्यवासाय नमः ||
ॐ सत्यवचसे नमः ||१०
ॐ श्रेयसां पतये नमः ||
ॐ अव्ययाय नमः ||
ॐ सोमजाय नमः ||
ॐ सुखदाय नमः ||
ॐ श्रीमते नमः ||
ॐ सोमवंशप्रदीपकाय नमः ||
ॐ वेदविदे नमः ||
ॐ वेदतत्त्वाशाय नमः ||
ॐ वेदान्तज्ञानभास्कराय नमः ||
ॐ विद्याविचक्षणाय नमः ||२०
ॐ विदुषे नमः ||
ॐ विद्वत्प्रीतिकराय नमः ||
ॐ ऋजवे नमः ||
ॐ विश्वानुकूलसंचाराय नमः ||
ॐ विशेषविनयान्विताय नमः ||
ॐ विविधागमसारज्ञाय नमः ||
ॐ वीर्यवते नमः ||
ॐ विगतज्वराय नमः ||
ॐ त्रिवर्गफलदाय नमः ||
ॐ अनन्ताय नमः ||३०
ॐ त्रिदशाधिपपूजिताय नमः ||
ॐ बुद्धिमते नमः ||
ॐ बहुशास्त्रज्ञाय नमः ||
ॐ बलिने नमः ||
ॐ बन्धविमोचकाय नमः ||
ॐ वक्रातिवक्रगमनाय नमः ||
ॐ वासवाय नमः ||
ॐ वसुधाधिपाय नमः ||
ॐ प्रसन्नवदनाय नमः ||
ॐ वन्द्याय नमः ||४०
ॐ वरेण्याय नमः ||
ॐ वाग्विलक्षणाय नमः ||
ॐ सत्यवते नमः ||
ॐ सत्यसंकल्पाय नमः ||
ॐ सत्यबन्धवे नमः ||
ॐ सदादराय नमः ||
ॐ सर्वरोगप्रशमनाय नमः ||
ॐ सर्वमृत्युनिवारकाय नमः ||
ॐ वाणिज्यनिपुणाय नमः ||
ॐ वश्याय नमः ||५०
ॐ वाताङ्गाय नमः ||
ॐ वातरोगहृते नमः ||
ॐ स्थूलाय नमः ||
ॐ स्थैर्यगुणाध्यक्षाय नमः ||
ॐ स्थूलसूक्ष्मादिकारणाय नमः ||
ॐ अप्रकाशाय नमः ||
ॐ प्रकाशात्मने नमः ||
ॐ घनाय नमः ||
ॐ गगनभूषणाय नमः ||
ॐ विधिस्तुत्याय नमः ||६०
ॐ विशालाक्षाय नमः ||
ॐ विद्वज्जनमनोहराय नमः ||
ॐ चारुशीलाय नमः ||
ॐ स्वप्रकाशाय नमः ||
ॐ चपलाय नमः ||
ॐ जितेन्द्रियाय नमः ||
ॐ उदङ्मुखाय नमः ||
ॐ मखासक्ताय नमः ||
ॐ मगधाधिपतये नमः ||
ॐ हरये नमः ||७०
ॐ सौम्यवत्सरसंजाताय नमः ||
ॐ सोमप्रियकराय नमः ||
ॐ महते नमः ||
ॐ सिंहाधिरूढाय नमः ||
ॐ सर्वज्ञाय नमः ||
ॐ शिखिवर्णाय नमः ||
ॐ शिवंकराय नमः ||
ॐ पीताम्बराय नमः ||
ॐ पीतवपुषे नमः ||
ॐ पीतच्छत्रध्वजाङ्किताय नमः ||८०
ॐ खड्गचर्मधराय नमः ||
ॐ कार्यकर्त्रे नमः ||
ॐ कलुषहारकाय नमः ||
ॐ आत्रेयगोत्रजाय नमः ||
ॐ अत्यन्तविनयाय नमः ||
ॐ विश्वपवनाय नमः ||
ॐ चाम्पेयपुष्पसंकाशाय नमः ||
ॐ चारणाय नमः ||
ॐ चारुभूषणाय नमः ||
ॐ वीतरागाय नमः ||९०
ॐ वीतभयाय नमः ||
ॐ विशुद्धकनकप्रभाय नमः ||
ॐ बन्धुप्रियाय नमः ||
ॐ बन्धुयुक्ताय नमः ||
ॐ वनमण्डलसंश्रिताय नमः ||
ॐ अर्केशाननिवासस्थाय नमः ||
ॐ तर्कशास्त्रविशारदाय नमः ||
ॐ प्रशान्ताय नमः ||
ॐ प्रीतिसंयुक्ताय नमः ||
ॐ प्रियकृते नमः ||१००
ॐ प्रियभूषणाय नमः ||
ॐ मेधाविने नमः ||
ॐ माधवसक्ताय नमः ||
ॐ मिथुनाधिपतये नमः ||
ॐ सुधिये नमः ||
ॐ कन्याराशिप्रियाय नमः ||
ॐ कामप्रदाय नमः ||
ॐ घनफलाश्रयाय नमः ||
||इति बुध अष्टोत्तरशतनामावलिः सम्पूर्णम् ||

सोमवार, 13 दिसंबर 2010

शनिवज्रपंजरकवचम्




!! शनिवज्रपंजरकवचम् !!
श्री गणेशाय नमः !!
नीलाम्बरो नीलवपुः किरीटी गृध्रस्थितस्त्रासकरो धनुष्मान् !
चतुर्भुजः सूर्यसुतः प्रसन्नः सदा मम स्याद् वरदः प्रशान्तः !! १ !!
!! ब्रह्मा उवाच !!
शृणुध्वमृषयः सर्वे शनिपीडाहरं महत् !
कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम् !! २ !!
कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम् !
शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम् !! ३ !!
ॐ श्रीशनैश्चरः पातु भालं मे सूर्यनन्दनः !
नेत्रे छायात्मजः पातु पातु कणौं यमानुजः !! ४ !!
नासां वैवस्वतः पातु मुखं मे भास्करः सदा !
स्निग्धकण्ठश्च मे कण्ठं भुजौ पातु महाभुजः !! ५ !!
स्कन्धौ पातु शनिश्चैव करौ पातु- शुभप्रदः !
वक्षः पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्तथा !! ६ !!
नाभिं ग्रहपतिः पातु मन्दः पातु कटिं तथा !
ऊरू ममान्तकः पातु यमो जानुयुगं तथा !! ७ !!
पदौ मन्दगतिः पातु सर्वांगं पातु पिप्पलः !
अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन् मे सूर्यनन्दनः !! ८ !!
इत्येतत् कवचं दिव्यं पठेत् सूर्यसुतस्य यः !
न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवति सूर्यजः !! ९  !!
व्यय- जन्म- द्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोऽपि वा !
कलत्रस्थो गतो वाऽपि सुप्रीतस्तु सदा शनिः !! १० !!
अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे !
कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित् !! ११ !!
इत्येतत्कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा !
द्वादशाऽष्टमजन्मस्थदोषान्नाशयते सदा !
जन्मलग्नस्थितान् दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभुः !! १२ !!
!! इति श्री ब्रह्माण्डपुराणे ब्रह्म- नारदसंवादे शनिवज्रपंजरकवचम् सम्पूर्णम् !!


आदरणीय पाठक गणॊं, शनि ग्रह के नाम मात्र से मनुष्य भयभीत हो
जाता है कुण्डली में शनि के अशुभ प्रभाव से मुक्ति हेतु उक्त वर्णित स्त्रोत का
श्रद्धा पूर्वक नित्य पाठ करने से शनि के प्रकोप से रक्षा होती है इसमे तनिक भी
सन्देह नहीं है !

शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

सम्पूर्ण विश्व में नग, रत्न आदि धारण करने का प्रचलन पुरातन काल से प्रचलित है प्राचीन काल में  समयों से ही दुनिया के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले लोग इनके प्रभाव के बारे में जानने अथवा न जानने के बावज़ूद भी इन्हें धारण करते रहे हैं। आज के युग में भी रत्न धारण करने का प्रचलन बहुत जोरों पर है तथा भारत जैसे देशों में जहां इन्हें ज्योतिष के प्रभावशाली उपायों और यंत्रों की तरह प्रयोग किया जाता है वहीं पर पश्चिमी देशों में रत्नों का प्रयोग अधिकतर आभूषणों की तरह किया जाता है। वहां के लोग भिन्न-भिन्न प्रकार के रत्नों की सुंदरता से मोहित होकर इनके प्रभाव जाने बिना ही इन्हें धारण कर लेते हैं। किन्तु भारत में रत्नों को अधिकतर ज्योतिष के उपाय के तौर पर तथा ज्योतिषियों के परामर्श के अनुसार ही धारण किया जाता है। किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली के अनुसार उसके लिए उपयुक्त रत्न चुनने को लेकर दुनिया भर के ज्योतिषियों में अलग-अलग तरह के मत एवम धारणाएं प्रचलित हैं। तो आइए आज इन धारणाओं के बारे में तथा इनकी सत्यता एवम सार्थकता के बारे में चर्चा करते हैं। 

                                                           सबसे पहले पश्चिमी देशों में प्रचलित धारणा के बारे में चर्चा करते हैं जिसके अनुसार किसी भी व्यक्ति की सूर्य राशि को देखकर उसके लिए उपयुक्त रत्न निर्धारित किए जाते हैं। इस धारणा के अनुसार एक ही सूर्य राशि वाले लोगों के लिए एक जैसे रत्न ही उपयुक्त होते हैं जो कि व्यवहारिकता की दृष्टि से बिल्कुल भी ठीक नहीं है। सूर्य एक राशि में लगभग एक मास तक स्थित रहते हैं तथा इस धारणा के अनुसार किसी एक मास विशेष में जन्में लोगों के लिए शुभ तथा अशुभ ग्रह समान ही होते हैं। इसका मतलब यह निकलता है कि प्रत्येक वर्ष किसी माह विशेष में जन्में लोगों के लिए शुभ या अशुभ फलदायी ग्रह एक जैसे ही होते हैं जो कि बिल्कुल भी व्यवहारिक नहीं है क्योंकि कुंडलियों में ग्रहों का स्वभाव तो आम तौर पर एक घंटे के लिए भी एक जैसा नहीं रहता फिर एक महीना तो बहुत लंबा समय है। इसलिए मेरे विचार में इस धारणा के अनुसार रत्न धारण नहीं करने चाहिएं।  

                                                           इस धारणा से आगे निकली एक संशोधित धारणा के अनुसार किसी भी एक तिथि विशेष को जन्में लोगों को एक जैसे रत्न ही धारण करने चाहिएं। पहली धारणा की तरह इस धारणा के मूल में भी वही त्रुटी है। किसी भी एक दिन विशेष में दुनिया भर में कम से कम हज़ारों अलग-अलग प्रकार की किस्मत और ग्रहों वाले लोग जन्म लेते हैं तथा उन सबकी किस्मत तथा उनके लिए उपयुक्त रत्नों को एक जैसा मानना मेरे विचार से सर्वथा अनुचित है। 

                                                            पश्चिमी देशों में प्रचलित कुछ धारणाओं पर चर्चा करने के पश्चात आइए अब भारतीय ज्योतिष में किसी व्यक्ति के लिए उपयुक्त रत्न निर्धारित करने को लेकर प्रचलित कुछ धारणाओं पर चर्चा करते हैं। सबसे पहले बात करते हैं ज्योतिषियों के एक बहुत बड़े वर्ग की जिनका यह मत है कि किसी भी व्यक्ति की जन्म कुंडली में लग्न भाव में जो राशि स्थित है जो उस व्यक्ति का लग्न अथवा लग्न राशि  कहलाती है, उस राशि के स्वामी का रत्न कुंडली धारक के लिए सबसे उपयुक्त रहेगा। उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में लग्न भाव यानि कि पहले भाव में मेष राशि स्थित है तो ऐसे व्यक्ति को मेष राशि के स्वामी अर्थात मंगल ग्रह का रत्न लाल मूंगा धारण करने से बहुत लाभ होगा। इन ज्योतिषियों की यह धारणा है कि किसी भी व्यक्ति की कुंडली में उसका लग्नेश अर्थात लग्न भाव में स्थित राशि का स्वामी ग्रह उस व्यक्ति के लिए सदा ही शुभ फलदायी होता है। यह धारणा भी तथ्यों तथा व्यवहारिकता की कसौटी पर खरी नहीं उतरती तथा मेरे निजी अनुभव के अनुसार लगभग 50 से 60 प्रतिशत लोगों के लिए उनके लग्नेश का रत्न उपयुक्त नहीं होता तथा इसे धारण करने की स्थिति में अधिकतर यह कुंडली धारक का बहुत नुकसान कर देता है। इसलिए केवल इस धारणा के अनुसार उपयुक्त रत्न का निर्धारण उचित नहीं है। 

                                                            ज्योतिषियों में प्रचलित एक और धारणा के अनुसार कुंडली धारक को उसकी कुंडली के अनुसार उसके वर्तमान समय में चल रही महादशा तथा अंतरदशा के स्वामी ग्रहों के रत्न धारण करने का परामर्श दिया जाता है। उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली के अनुसार उसके वर्तमान समय में शनि ग्रह की महादशा तथा बुध ग्रह की अंतरदशा चल रही है तो ज्योतिषियों का यह वर्ग इस व्यक्ति को शनि तथा बुध ग्रह के रत्न धारण करने का परामर्श देगा जिससे इनकी धारणा के अनुसार उस व्यक्ति को ग्रहों की इन दशाओं से लाभ प्राप्त होंगे। यह मत लाभकारी होने के साथ-साथ अति विनाशकारी भी हो सकता है। किसी भी शुभ या अशुभ फलदायी ग्रह का बल अपनी महादशा तथा अंतरदशा में बढ़ जाता है तथा किसी कुंडली विशेष में उस ग्रह द्वारा बनाए गए अच्छे या बुरे योग इस समय सबसे अधिक लाभ या हानि प्रदान करते हैं। अपनी दशाओं में चल रहे ग्रह अगर कुंडली धारक के लिए सकारात्मक हैं तो इनके रत्न धारण करने से इनके शुभ फलों में और वृद्दि हो जाती है, किन्तु यदि यह ग्रह कुंडली धारक के लिए नकारात्मक हैं तो इनके रत्न धारण करने से इनके अशुभ फलों में कई गुणा तक वृद्धि हो जाती है तथा ऐसी स्थिति में ये ग्रह कुंडली धारक को बहुत भारी तथा भयंकर नुकसान पहुंचा सकते हैं। मेरे पास अपनी कुंडली के विषय में परामर्श प्राप्त करने आए ऐसे ही एक व्यक्ति की उदाहरण मैं यहां पर दे रहा हूं।  

                                                            यह सज्जन बहुत पीड़ित स्थिति में मेरे पास आए थे। इनकी कुंडली के अनुसार मंगल इनके लग्नेश थे तथा मेरे पास आने के समय इनकी कुंडली के अनुसार मंगल की महादशा चल रही थी। इन सज्जन ने अपने दायें हाथ की कनिष्का उंगली में लाल मूंगा धारण किया हुआ था। इनकी कुंडली का अध्ययन करने पर मैने देखा कि मंगल इनकी कुंडली में लग्नेश होने के बावजूद भी सबसे अधिक अशुभ फलदायी ग्रह थे तथा उपर से मगल की महादशा और इन सज्जन के हाथ में मंगल का रत्न, परिणाम तो भंयकर होने ही थे। इन सज्जन से पूछने पर इन्होने बताया कि जब से मंगल महाराज की महादशा इनकी कुंडली में शुरु हुई थी, इनके व्वयसाय में बहुत हानि हो रही थी तथा और भी कई तरह की परेशानियां आ रहीं थीं। फिर इन सज्जन ने किसी ज्योतिषि के परामर्श पर इन मुसीबतों से राहत पाने के लिए मंगल ग्रह का रत्न लाल मूंगा धारण कर लिया। मैने इन सज्ज्न को यह बताया कि आपकी कुंडली के अनुसार मंगल ग्रह का यह रत्न आपके लिए बिल्कुल भी शुभ नहीं है तथा यह रत्न आपको इस चल रहे समय के अनुसार किसी भारी नुकसान या विपत्ति में डाल सकता है। मेरे यह कहने पर इन सज्जन ने बताया कि यह रत्न इन्होंने लगभग 3 मास पूर्व धारण किया था तथा इसे धारण करने के दो मास पश्चात ही धन प्राप्ति के उद्देश्य से किसी आपराधिक संस्था ने इनका अपहरण कर लिया था तथा कितने ही दिन उनकी प्रताड़ना सहन करने के बाद इनके परिवार वालों ने किसी सम्पत्ति को गिरवी रखकर उस संस्था द्वारा मांगी गई धन राशि चुका कर इन्हें रिहा करवाया था। अब यह सज्जन भारी कर्जे के नीचे दबे थे तथा कैद के दौरान मिली प्रताड़ना के कारण इनका मानसिक संतुलन भी कुछ हद तक बिगड़ गया था। 

                                                               मुख्य विषय पर वापिस आते हुए, ज्योतिषियों का एक और वर्ग किसी व्यक्ति के लिए उपयुक्त रत्न निर्धारित करने के लिए उपर बताई गई सभी धारणाओं से कहीं अधिक विनाशकारी धारणा में विश्वास रखता है। ज्योतिषियों का यह वर्ग मानता है कि प्रत्येक व्यक्ति को उसकी कुंडली के अनुसार केवल अशुभ फल प्रदान करने वाले ग्रहों के रत्न ही धारण करने चाहिएं। ज्योतिषियों के इस वर्ग का मानना है कि नकारात्मक ग्रहों के रत्न धारण करने से ये ग्रह सकारात्मक हो जाते हैं तथा कुंडली धारक को शुभ फल प्रदान करना शुरू कर देते हैं। क्योंकि मैं रत्नों की कार्यप्रणाली से संबंधित तथ्यों पर अपने पिछ्ले लेखों में विस्तारपूर्वक प्रकाश डाल चुका हूं, इसलिए यहां पर मैं अपने पाठकों को यही परामर्श दूंगा कि यदि आप में से किसी भी पाठक का संयोग ऐसे किसी ज्योतिषि से हो जाए जो आपको यह परामर्श दे कि आप अपनी कुंडली में अशुभ फल प्रदान करने वाले ग्रहों के रत्न धारण करें तो शीघ्र से शीघ्र ऐसे ज्योतिषि महाराज के स्थान से चले जाएं तथा भविष्य में फिर कभी इनके पास रत्न धारण करने संबंधी परामर्श प्राप्त करने न जाएं। 

                                                             चलिए अब अंत में इन सारी धारणाओं की चर्चा से निकलते सार को देखते हैं। रत्न केवल और केवल उसी ग्रह के लिए धारण करना चाहिए जो आपकी जन्म कुंडली में सकारात्मक अर्थात शुभ फलदायी हो जबकि उपर बताई गई कोई भी धारणा रत्न धारण करने के इस मूल सिद्धांत को ध्यान में नहीं रखती। इसलिए केवल उपर बताई गईं धारणाओं के अनुसार रत्न धारण नहीं करने चाहिएं तथा रत्न केवल ऐसे ज्योतिषि के परामर्श पर ही धारण करने चाहिएं जो आपकी कुंडली का सही अध्ययन करने के बाद यह निर्णय लेने में सक्षम हो कि आपकी कुंडली के अनुसार आपके लिए शुभ फल प्रदान करने वाले ग्रह कौन से हैं तथा उनमें से किस ग्रह का रत्न आपको धारण करना चाहिए। 

लेखक  

मंगलवार, 30 नवंबर 2010

ज्योतिष फलादेश असफल क्यों होते है?

मित्रों ज्योतिष एक विज्ञान है परन्तु इस विज्ञान का इस्तेमाल एक विज्ञानिक 
ही कर सकता है जिसने इस ज्योतिष विज्ञान पर कुछ शोध किया हो इसके 
सिद्धान्तो के बारे मे स्वयं अनुभव किया हो कहने का तात्पर्य सिर्फ़ इतना है 
कि पुस्तकीय सिद्धान्त जब प्रयोगिक तौर पर अनुभव मे आते है तभी सिद्धन्तो
के मूल की जानकारी होती है !

जैसे गुरुत्वाकर्षण शक्ति के सिद्धान्त का प्रतिपादन न्यूटन ने किया था तो क्या
ये कहा जाना चाहिये कि न्यूटन के प्रतिपादन से पूर्व क्या गुरुत्वाकर्षण शक्ति 
नही थी या लोगों को गुरुत्वाकर्षण शक्ति के बारे मे मालुम नही था ! गुरुत्वाकर्षण
शक्ति पहले भी थी आज भी है शायद लोग उसे किसी दूसरी संज्ञा से पुकारते रहे 
हो ये हो सकता है !

ज्योतिष के बारे में लोगो में अलग अलग धारणाये है जैसे लोग इसे ज्ञान, शास्र,
विद्या, हुनर या एक कला के रूप में जानते है होता ये है की अधिकांशतः ज्योतिषी
सिर्फ़ साधारण तौर पर कुछ पुस्तकीय ज्ञान के आधार पर ही फ़लदेश करते है 
और फ़लदेश गलत साबित हो जाता है कारण सिर्फ़ इतना है कि यदि थोडा सा 
गहन अध्यन किया गया होता तो फ़लादेश गलत साबित नही होता ! 

एक जातक एक ज्योतिषी से सलाह लेता है ज्योतिषी सिर्फ़ दशम भाव मे स्थित 
एक कारक ग्रह देखता है जिसकी दशा प्रारम्भ होने वाली थी ! ज्योतिषी ने 
फ़लादेश किया कि आने वाले छः माह के दौरान नौकरी मे पदोन्नति, व्यापार 
मे तरक्की या लाभ प्राप्त होगा ! समय बीतता गया जातक के जीवन मे कोई शुभ 
बदलाव होने के बजाय, उसे हानि हुई ! एक फ़लादेश गलत साबित होता है कुछ 
ज्योतिष को दोष देते है कुछ ज्योतिषी को ! आखिर दोषी है कौन ज्योतिष या 
ज्योतिषी ! वास्तव मे अगर गहन मन्थन किया जाये तो ना ज्योतिष दोषी है ना
ही ज्योतिषी ! हां ज्योतिषी का इतना कसूर है कि उसने सिर्फ़ किताबी ज्ञान का 
इस्तेमाल किया जब कि पुस्तकीय सिद्धन्तों की गहराई समझने की आवश्यकता
है उन्हे अनुभव मे लाने से पूर्व प्रयोगात्मक रूप से ग्रह, राशि एवम नक्षत्र का 
वास्तविक एवम तत्कालिक स्वभाव एवम गुण का अध्यन करना चाहिये था !

इसी तरह अन्य मामलों में ज्योतिषी भविष्यवाणी करते हैं कि:-
समय बुरा चल रह है दुर्घटना हो सकती है आप अस्पताल में भर्ती हो सकते है !
शादी हो सकती है ! तलाक होगी ! अपनी नौकरी खो सकते हैं !
लेकिन यह कभी नहीं हुआ, भविष्यवाणी गलत हो गयी !
इन सभी मामलों में ज्योतिषी सहित सब हैरान रह गये !
परन्तु ज्योतिषी अभी भी सफ़ाई देते है कि विपरीत राज योग के कारण ऐसा हुआ आदि आदि !

यदि ज्योतिषी ग्रह , राशियों एवम नक्षत्रों के गुण स्वभाव का गहन अध्यन करने के 
साथ साथ वैदिक ज्योतिष के सिधन्तो का अध्यन करें तो सत प्रतिशत शुद्ध फ़लादेश
या भविष्यवाणी की जा सकती है !

रविवार, 28 नवंबर 2010

ज्योतिषीय योगो की सत्यता (कृष्णमूर्ति पद्धति)


ज्योतिषीय योगो की सत्यता : आज के समय में परंपरागत ज्योतिषी,  वैदिक ज्योतिषी बन तरह तरह के ज्योतिषीय योगो की बात करते है उनके अनुसार जातक या मनुष्य अमीर होगा या गरीब होगा, राजा होगा या फकीर होगा ये उसकी कुंडली में ग्रह योगो के आधार पर ही निर्धारित हो सकता है ! आज विभिन्न प्रकार के राजयोगो की ज्योतिष जगत में बहुत  चर्चा है गजकेसरी योग, बुधादित्य योग, लक्ष्मी योग, दरिद्र योग आदि आदि न जाने कितने ही शुभ-अशुद्ध योग ज्योतिष जगत में प्रचारित है ! इन योगो का प्रतिपादन किस आधार पर किया गया समझ से बाहर की बात है ! 
आज व्यावहारिक रूप से यदि ज्योतिषीय योगो की सत्यता का मूल्याङ्कन किया जाता है तो स्पष्ट होता है की सैकड़ो लोग जिनकी कुंडली में गजकेसरी, लक्ष्मी योग आदि शुभ एवं राज सुख दाई योग मौजूद है परन्तु वह दो वक्त भर पेट रोटी को मौताज है ! ठीक इसी प्रकार कुछ योग जिनका परिणाम या प्रभाव ज्योतिष जगत में यह बताया जाता है की प्रेमविवाह योग , पति वियोग योग, बंधन योग (जेल यात्रा), पुत्र वियोग योग, द्विभार्या योग, द्विपतियोग, आदि आदि न जाने कितने ही योग है यदि सभी की चर्चा की जाये तो संभव नहीं है !
जब हम चर्चा करते है की व्यवहार में यह सब सच नहीं है जहा परम्परागत ज्योतिषी घोषणा करते है की जातक की कुंडली में गजकेसरी योग या लक्ष्मी योग है जातक लोकप्रिय, समृद्ध और अमीर होगा परन्तु इस प्रकार के अनेक योग कुंडली में मौजूद होने के बाद भी अधिकांश लोग दरिद्रता, दुःख तथा कठिनाइयों से ग्रस्त हैं और एक अस्पष्ट जीवन जी रहे है कुछ मामलो में देखा गया की जातक के पास सभी सुविधाए थी पंडित कहते है की योग शुभ है परन्तु जातक ने जीवन में सब कुछ खो दिया है, सभी सुविधाए समाप्त हो गयी बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे जातक बेघर हो गया !
आज जब परम्परागत ज्योतिषी ग्रह योगो के आधार पर किसी महिला से कह देते है कि आपके पति की कुण्डली मे द्विभार्या योग है तो वो परेसान हो जाती है फ़िर शुरु होत है योग शान्ति का खेल ! कुछ पारंपरिक ज्योतिष जगत के विद्वान पहले अशुभ योग का बखान करते है फ़िर भविष्य में सफलता एवम खुशी की झूठी उम्मीदें देकर ग्राहक को प्रोत्साहित करते है क्या कभी किसी ज्योतिषी ने एक निर्धन बेघर व्यक्ति जिसकी कुण्डली मे गजकेसरी योग और लक्ष्मी योग है उसके अप्रभावी योग को प्रभावी करने मे सफ़लता प्राप्त की है !
वैदिक ज्योतिष कहती है की जो कुण्डली मे है वो ही प्राप्त होगा रही बात कि कब और कैसे प्राप्त होगा यह ग्रह अपने स्वामित्व एवम स्थित राशि एवम नक्षत्र की सूचना के अनुसार एवम दशाओ के समय ही प्राप्त होता है !
अब हम चर्चा करे कि आखिर योग है क्या ग्रह की किसी राशि मे, किसी ग्रह के साथ संयोजन ही एक योग है परन्तु यह योग क्या कह रह है यह ग्रह की स्थिति एवम स्वमित्व के ऊपर निर्भर करता है !
अब ज्योतिषी कहते है कि अमुक ग्रह शुभ है अमुक ग्रह अशुभ है तो सबसे पहले यह स्पष्ट करना चाह्ता हू कि ना ही कोई ग्रह शुभ होता है ना ही अशुभ !
अब चर्चा कि कहा जाता है कि 6, 8 एवं 12 भाव अशुभ है तो सबसे पहले यह समझने का प्रयास करे कि 6 भाव सभी विषयो के लिये अशुभ नही है यदि हम किसी प्रतियोगिता मे जातक के सम्मिलित होने के विषय पर देखे तो 7 भाव प्रतियोगिता मे जातक के प्रतियोगी को दर्शाता है तथा ‍6 भाव प्रतियोगी का व्यय भाव है यदि प्रतियोगिता के समय 7 भाव का स्वामी 6 भाव मे गोचर कर रहा है तथा वह 11 वे भाव के कारक ग्रह के नक्षत्र मे गोचर वश है तो जातक को सफ़लता प्राप्त होगी इसमे तनिक भी सन्देह नही है !
किसी कुंडली में राजयोग या अशुभ योग होना एक गारंटी नही है ! ग्रहो के परम्परागत गुणो, स्वमित्व एवम स्थित भाव एवम नक्षत्रो का अध्यन किये बिना कोई भी फ़लादेश करना पांडित्य की अल्पता का प्रमाण प्रस्तुत करता है !

ज्योतिषीय योगो की सत्यता (कृष्णमूर्ति पद्धति)


ज्योतिषीय योगो की सत्यता : आज के समय में परंपरागत ज्योतिषी,  वैदिक ज्योतिषी बन तरह तरह के ज्योतिषीय योगो की बात करते है उनके अनुसार जातक या मनुष्य अमीर होगा या गरीब होगा, राजा होगा या फकीर होगा ये उसकी कुंडली में ग्रह योगो के आधार पर ही निर्धारित हो सकता है ! आज विभिन्न प्रकार के राजयोगो की ज्योतिष जगत में बहुत  चर्चा है गजकेसरी योग, बुधादित्य योग, लक्ष्मी योग, दरिद्र योग   आदि आदि न जाने कितने ही शुभ-अशुद्ध योग ज्योतिष जगत में प्रचारित है ! इन योगो का प्रतिपादन किस आधार पर किया गया समझ से बाहर की बात है ! आज व्यावहारिक रूप से यदि ज्योतिषीय योगो की सत्यता का मूल्याङ्कन किया जाता है तो स्पष्ट होता है की सैकड़ो लोग जिनकी कुंडली में गजकेसरी, लक्ष्मी योग आदि शुभ एवं राज सुख दाई योग मौजूद है परन्तु वह दो वक्त भर पेट रोटी को मौताज है !ठीक इसी प्रकार कुछ योग जिनका परिणाम या प्रभाव ज्योतिष जगत में यह बताया जाता है की प्रेमविवाह योग , पति वियोग योग, बंधन योग (जेल यात्रा), पुत्र वियोग योग, द्विभार्या योग, द्विपतियोग, आदि आदि न जाने कितने ही योग है यदि सभी की चर्चा की जाये तो संभव नहीं है !
जब हम चर्चा करते है की व्यवहार में यह सब सच नहीं है जहा परम्परागत ज्योतिषी घोषणा करते है की जातक की कुंडली में गजकेसरी योग या लक्ष्मी योग है जातक लोकप्रिय, समृद्ध और अमीर होगा परन्तु इस प्रकार के अनेक योग कुंडली में मौजूद होने के बाद भी अधिकांश लोग दरिद्रता, दुःख तथा कठिनाइयों से ग्रस्त हैं और एक अस्पष्ट जीवन जी रहे है कुछ मामलो में देखा गया की जातक के पास सभी सुविधाए थी पंडित कहते है की योग शुभ है परन्तु जातक ने जीवन में सब कुछ खो दिया है, सभी सुविधाए समाप्त हो गयी बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे जातक बेघर हो गया !
आज परम्परागत ज्योतिषियों से चर्चा करो तो कहते है की र्चा  सकते हैं..इन rajayogas कुछ पारंपरिक करने के लिए और भविष्य में सफलता खुशी की झूठी उम्मीदें देकर ग्राहक को प्रोत्साहित करने के लिए ज्योतिषियों सुखद संयोजन कर रहे हैं. एक बेघर व्यक्ति भीगजकेसरी  योग और लक्ष्मी योग है.  एक कुंडली में राजयोग  का अस्तित्व एक गारंटी है कि एक एक के जीवन का आनंद नहीं है. हमारी परम्परागत पंडितों में से कई को ये तथाकथित Rajayogas पढ़ने के रूप में वे इच्छा का प्रयास. वहां पूरा करने के लिए नियम वैसे भी व्याख्या करते हैं, कम से कम वे ऐसा लगता है स्वेच्छाबलि है. एक तो 6 या 8 या 12 के स्वामी 12, Vipreetha Rajyoga में है बोली लगा सकते हैं.यदि किसी व्यक्ति का एक समान चार्ट उत्पन्न होता है और यह दिखाया गया है कि सभी Vipreetha Rajyoga के लिए उल्लेख किया सामग्री लागू है लेकिन कुछ भी नहीं था क्या हुआ हैं, वह चारों ओर झाड़ी को हरा दिया है. एक धनु में पैदा हुआ व्यक्ति 12 वीं घर में (8 प्रभु) चाँद और सूरज (9 प्रभु) था, 3 डिग्री के अलावा. चंद्रमा शुक्र उप में था, और सूर्य मंगल उप में था. देशी सूर्य अवधि के दौरान पैसे बनाने के लिए संघर्ष किया था और दुर्बल चंद्रमा के दशक में भाग्यmahadasa, कैसे? जब दोनों सूर्य और चंद्रमा एक ही राशि में 12 घर में हैं, वही नक्षत्र अनुराधा 2 से खारिज कर दिया और 3 शनि महाराज. कारण यह है सूर्य 5 वीं और 12 वीं प्रभु मंगल उप में था उसे अटकलों में पैसा ढीला करने के लिए कारण होता है. 8 प्रभु जबकि6 और 11 वीं प्रभु शुक्र का उप में चंद्रमा दुर्बल बनाया उसे चंद्रमा Mahadasa दौरान भाग्य कमाते हैं. इस ज्योतिषियों जो पारंपरिक प्रणाली को और अधिक भ्रमित पालन करता है. वे इस तथ्य खुले तौर पर स्वीकार करने में संकोच.
वहाँ धन में रोलिंग लोग, किसी योग के बिना जिम्मेदार पदों पर रहे हैं. मैं एक बहुत ही सफल व्यवसाय आदमी से मुलाकात की. वह करोड़ों डॉलर बना देता है. उसकी कुंडली में वहाँ 3 दुर्बल ग्रहों और कोई Rajayoga हैं. जब मैं उनके कार्यालय से बाहर आया, उनके सहायकमुझे अपने जन्म चार्ट दिखाया. चार ग्रहों yogas में पाए गए. अपने भाग्य को देखो? उन्होंने मुझसे कहा कि एक क्षुद्र वेतन बढ़ाने के लिए व्यापार आदमी को सलाह देते हैं.
वहाँ ज्योतिषियों का दावा है कि 1, 5, 9 (जो कहा जाता है Kona मकान हो) अच्छे परिणाम से संकेत मिलता होगा रहे हैं. लेकिन फिर वे गलत हैं. उदाहरण के लिए, कैंसर के लिए ascendants 5 वीं और 9 घर चिह्न (नक्षत्रों) तारामंडल है कि 6 से प्रभु का शासन कर रहे हैंया 8 या 12. इन नक्षत्रों में 5 वीं या 9 घर में ग्रहों तो कैंसर ascendants साथ देशी को भयानक परिणाम देती है. लेकिन वे मंगल ग्रह के नक्षत्र में ग्रहों की अवधि के दौरान भाग्यशाली रहे हैं भले ही मकान 3 या 8 या 12 हो सकती है. इसलिए, ग्रहों छह घरों, 8 में posited, 12 हमेशा बुराई परिणाम उपज नहीं है. तो यह किया जा सकता खुले तौर पर कहा कि सभी नौ ग्रहों उनकी प्रकृति और स्वभाव के बावजूद अच्छे और बुरे की घटनाओं के कारण. इस ज्योतिषियों जो परंपरागत वैदिक ज्योतिष प्रणाली का पालन करता हैअधिक उलझन में है. वे इस तथ्य खुले तौर पर स्वीकार करने में संकोच. इसके अलावा वहाँ अनगिनत नियमों और yogas, जिनमें से एक में सक्षम ज्योतिषी केवल एक ग्राहक कृपया कुछ स्मृति में हो सकते हैं.

शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

कृष्णमूर्ति पद्धति कारक ग्रह

कृष्णमूर्ति पद्धति में "कारक ग्रहों" को सर्वाधिक महत्व प्रदान किया जाता है अब प्रश्न यह उठता है कि कारक हैं कौन से ग्रह और इनका क्या योगदान है ज्योतिष में कुण्डली का अध्यन करते समय किसी भी विषय या घटना के जानने के लिये उस से सम्बन्धित भाव का उस भाव के स्वामी ग्रह का उस भाव मे स्थित ग्रह उस भाव स्वमी ग्रह एवम उस भाव को देखरहे ग्रह तथा उस घटना या भाव के स्थाई कारक ग्रहों का अध्यन किया जाता है परन्तु कृष्णमूर्ति पद्धति में जन्म कुण्डली एवम प्रश्न कुण्डली दोनो के अध्यन में कारक ग्रहों को प्रमुखता से महत्व दिया जाता है ! 

कारक ग्रह : ग्रह मुख्य रूप से उस भाव का फ़ल प्रदान करते हैं जिस भाव मे वह स्थित होते हैं,  जिस भाव के स्वामी होते हैं, जिस भाव पर द्रष्टि रखते हैं अर्थात इन भावों के कारक होते हैं या इन भावों से सम्बन्धित परिणाम प्रदान करते हैं परन्तु कृष्णमूर्ति पद्धति में कारक ग्रह निर्धारण की पद्धति कुछ भिन्न है जो इस पद्धति की मुख्य जान है ! जो श्रेणी के अनुसार निम्नलिखित हैं :-
१.     भाव में स्थित ग्रह के स्वामित्व वाले नक्षत्रों में स्थित ग्रह !
२.    भाव में स्थित ग्रह !
३.    भाव के स्वामी ग्रह के स्वामित्व वाले नक्षत्रों में स्थित ग्रह !
४.    भाव का स्वामी ग्रह !
५.    प्रमुख कारक ग्रह के साथ स्थित ग्रह भी कारक होता है जब कि राहु तथा केतु यदि कारक ग्रह को देख रहे हों तो वह भी बलशाली कारक होजाते हैं !
उदाहरण :-
किसी भी कुण्डली के अध्यन करते समय यदि विवाह के विषय मे फ़लादेश करना हो तो सर्व प्रथम यह देखना आवश्यक है कि विवाह के लिये किन किन भावों का संयुक्त रूप से क्रियाशील होना विवाह के लिये आवश्यक है !
१.     सप्तम भाव :  विवाह के लिये मुख्य रूप से सप्तम भाव जिम्मेदार होता है सप्तम अर्थात सम्पर्क मे रहने वाला या वाली , सप्तम भाव जीवनसाथी को दर्शाता है  !
२.     द्वितीय भाव : द्वितीय भाव परिवार को दर्शाता है द्वितीय भाव परिवार में ब्रद्धि को दर्शाता है !
३.     ग्यारहवां भाव जातक के जीवन में लाभ दर्शाता है सच्चे मित्र को दर्शाता है !
४.     शुक्र मुख्य रूप या स्थाई रूप से विवाह का कारक होता है !

अतः विवाह के लिये कुण्डली के उक्त तीन भावों का संयुक्त रुप से अध्यन अर्थात उक्त तीनों भावों के कारक ग्रहों अध्यन किया जाता है ! अर्थात उक्त कारकों की संयुक्त महादशा, अन्तर्द्शा, प्रत्यंतर्दशा मे ही विवाह होगा !

जातक के जीवन के किन विषयों के अध्यन के लिये कुण्डली के किन भावो के करकों का संयुक्त रुप से अध्यन किया जाता है :
विषय                                  घटना के लिये उत्तरदयी भाव या कारक
स्वास्थ                          :     प्रथम एवम एकादश भाव !
रोग                               :     छ्ठा, आठवां एवम बारहवां भाव !
दुर्घटना                          :     आठवां, बारहवां एवम बाधक भाव !
आर्थिक स्थिति               :     दूसरा, छठा एवम ग्यारहवां भाव !
आर्थिक हानि                  :     आठवां, बारहवां एवम पंचम भाव !
स्थान परिवर्तन              :     तीसरा, दसवां एवम बारहवां भाव !
शिक्षा                            :     चतुर्थ, नवम एवम एकादश भाव !
भूमि, भवन                    :     चतुर्थ, एकादश एवम द्वादश भाव !
संतान जन्म                  :     द्वितीय, पंचम एवम एकादश भाव !
प्रेम प्रसंग                      :     द्वितीय, सप्तम एवम एकादश भाव !
तलाक                          :     प्रथम, छठा एवम दशम भाव !
व्यापार                         :     द्वितीय, दशम एवम एकाद्श भाव !

कृष्णमूर्ति पद्धति कारक ग्रह

कृष्णमूर्ति पद्धति में "कारक ग्रहों" को सर्वाधिक महत्व प्रदान किया जाता है अब प्रश्न यह उठता है कि कारक हैं कौन से ग्रह और इनका क्या योगदान है ज्योतिष में कुण्डली का अध्यन करते समय किसी भी विषय या घटना के जानने के लिये उस से सम्बन्धित भाव का उस भाव के स्वामी ग्रह का उस भाव मे स्थित ग्रह उस भाव स्वमी ग्रह एवम उस भाव को देखरहे ग्रह तथा उस घटना या भाव के स्थाई कारक ग्रहों का अध्यन किया जाता है परन्तु कृष्णमूर्ति पद्धति में जन्म कुण्डली एवम प्रश्न कुण्डली दोनो के अध्यन में कारक ग्रहों को प्रमुखता से महत्व दिया जाता है ! 


कारक ग्रह : ग्रह मुख्य रूप से उस भाव का फ़ल प्रदान करते हैं जिस भाव मे वह स्थित होते हैं,  जिस भाव के स्वामी होते हैं, जिस भाव पर द्रष्टि रखते हैं अर्थात इन भावों के कारक होते हैं या इन भावों से सम्बन्धित परिणाम प्रदान करते हैं परन्तु कृष्णमूर्ति पद्धति में कारक ग्रह निर्धारण की पद्धति कुछ भिन्न है जो इस पद्धति की मुख्य जान है ! जो श्रेणी के अनुसार निम्नलिखित हैं :-
१.     भाव में स्थित ग्रह के स्वामित्व वाले नक्षत्रों में स्थित ग्रह !
२.    भाव में स्थित ग्रह !
३.    भाव के स्वामी ग्रह के स्वामित्व वाले नक्षत्रों में स्थित ग्रह !
४.    भाव का स्वामी ग्रह !
५.    प्रमुख कारक ग्रह के साथ स्थित ग्रह भी कारक होता है जब कि राहु तथा केतु यदि कारक ग्रह को देख रहे हों तो वह भी बलशाली कारक होजाते हैं !
उदाहरण :-
किसी भी कुण्डली के अध्यन करते समय यदि विवाह के विषय मे फ़लादेश करना हो तो सर्व प्रथम यह देखना आवश्यक है कि विवाह के लिये किन किन भावों का संयुक्त रूप से क्रियाशील होना विवाह के लिये आवश्यक है !
१.     सप्तम भाव :  विवाह के लिये मुख्य रूप से सप्तम भाव जिम्मेदार होता है सप्तम अर्थात सम्पर्क मे रहने वाला या वाली , सप्तम भाव जीवनसाथी को दर्शाता है  !
२.     द्वितीय भाव : द्वितीय भाव परिवार को दर्शाता है द्वितीय भाव परिवार में ब्रद्धि को दर्शाता है !
३.     ग्यारहवां भाव जातक के जीवन में लाभ दर्शाता है सच्चे मित्र को दर्शाता है !
४.     शुक्र मुख्य रूप या स्थाई रूप से विवाह का कारक होता है !


अतः विवाह के लिये कुण्डली के उक्त तीन भावों का संयुक्त रुप से अध्यन अर्थात उक्त तीनों भावों के कारक ग्रहों अध्यन किया जाता है ! अर्थात उक्त कारकों की संयुक्त महादशा, अन्तर्द्शा, प्रत्यंतर्दशा मे ही विवाह होगा !


जातक के जीवन के किन विषयों के अध्यन के लिये कुण्डली के किन भावो के करकों का संयुक्त रुप से अध्यन किया जाता है :
विषय                                  घटना के लिये उत्तरदयी भाव या कारक
स्वास्थ                          :     प्रथम एवम एकादश भाव !
रोग                               :     छ्ठा, आठवां एवम बारहवां भाव !
दुर्घटना                          :     आठवां, बारहवां एवम बाधक भाव !
आर्थिक स्थिति               :     दूसरा, छठा एवम ग्यारहवां भाव !
आर्थिक हानि                  :     आठवां, बारहवां एवम पंचम भाव !
स्थान परिवर्तन              :     तीसरा, दसवां एवम बारहवां भाव !
शिक्षा                            :     चतुर्थ, नवम एवम एकादश भाव !