शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

भविष्य जानने की मूल वैदिक पद्धति "क्रिष्णमूर्ति पद्धति"

     आज ज्योतिष जगत में भविष्य जानने की अनेक पद्धतियां प्रचलन में हैं जैसे:- हस्तरेखा शास्त्र, रमल विद्या, टैरो कार्ड आदि परन्तु मूलतः भारतीय वैदिक ज्योतिष पद्धति ही सर्वाधिक प्राचीन एंवम सत्प्रतिशत शुद्ध फ़लादेश देने में सक्षम पद्धति है जिसके विषय मे वेदों मे वर्णन है और वेदों को पाश्चात्य जगत के विद्वानो ने भी विश्व के सर्वाधिक प्रचीन ग्रन्थ माना है अतः यह प्रमाणित होता है कि भारतीय वैदिक ज्योतिष पद्धति ही विश्व की सर्वाधिक प्राचीन पधति है जो कि मुलतः नक्षत्र आधारित है ! क्रिष्णामूर्ति पद्धति, भारतीय वैदिक ज्योतिष पद्धति का ही विकसित स्वरूप है कारण भारतीय वैदिक ज्योतिष पद्धति मे सर्वाधिक महत्व जिस दशा पद्धति को प्रदान किया जाता है वह विंशोत्तरी दशा पद्धति नक्षत्र आधारित है तथा क्रिष्णामूर्ति जी ने पुर्णतः विशोत्तरी दशा पद्धति के काल निर्धारण को आधार मानकर 27 नक्षत्रों का पुर्नविभाजन किया था ! यह सिद्ध है कि क्रिष्णामूर्ति पद्धति, भारतीय वैदिक ज्योतिष पद्धति तथा विंशोत्तरी दशा का ही विकसित स्वरूप है !

      क्रिष्णामूर्ति पद्धति, भारतीय वैदिक ज्योतिष पद्धति का ही विकसित स्वरूप है इस पद्धति मे सर्वाधिक महत्व नक्षत्रों को ही प्रदान किया जाता है ग्रह किस राशि मे स्थित है इससे अधिक पहत्वपूर्ण है कि ग्रह किस नक्षत्र में स्थित है जव कि वर्तमान समय मे ज्योतिष जगत मे नक्षत्रों को फ़लादेश मे महत्व नहीं दिया जाता है ! ज्योतिष जगत में आज भी जब किसी बच्चे का जन्म होता है तो उस के शुभ अशुभ का ग्यान करने के लिये जन्म नक्षत्र को ही आधार मानकर फ़लादेश किया जाता है ! आज भी किसी भी प्रकार के मुहूर्त निर्धारण मे नक्षत्रों को ही महत्व दिया जाता है  परन्तु कुण्डली के फ़लादेश के लिये नक्षत्रों को नकारा जाता है जब कि भविष्य  की घटनाओं  के कथन एंव काल निर्धारण में पूर्णतः नक्षत्र अधारित दशा पद्धति विंशोत्तरी दशा का ही प्रयोग किया जाता है !

     स्वर्गीय क्रिष्णमूर्ति जी ने विश्व की भविष्य फ़लकथन की विधाओं का अध्यन किया था , अपने गहन शोध एंव अध्यन के पश्चात यह सिद्ध कर दिया कि ज्योतिष में सर्वाधिक महत्व नक्षत्र का ही है, ग्रह अपने दशा काल में अपने नक्षत्रेश के द्वारा सूचित फ़लों को प्रदान करता है