मंगलवार, 30 नवंबर 2010

ज्योतिष फलादेश असफल क्यों होते है?

मित्रों ज्योतिष एक विज्ञान है परन्तु इस विज्ञान का इस्तेमाल एक विज्ञानिक 
ही कर सकता है जिसने इस ज्योतिष विज्ञान पर कुछ शोध किया हो इसके 
सिद्धान्तो के बारे मे स्वयं अनुभव किया हो कहने का तात्पर्य सिर्फ़ इतना है 
कि पुस्तकीय सिद्धान्त जब प्रयोगिक तौर पर अनुभव मे आते है तभी सिद्धन्तो
के मूल की जानकारी होती है !

जैसे गुरुत्वाकर्षण शक्ति के सिद्धान्त का प्रतिपादन न्यूटन ने किया था तो क्या
ये कहा जाना चाहिये कि न्यूटन के प्रतिपादन से पूर्व क्या गुरुत्वाकर्षण शक्ति 
नही थी या लोगों को गुरुत्वाकर्षण शक्ति के बारे मे मालुम नही था ! गुरुत्वाकर्षण
शक्ति पहले भी थी आज भी है शायद लोग उसे किसी दूसरी संज्ञा से पुकारते रहे 
हो ये हो सकता है !

ज्योतिष के बारे में लोगो में अलग अलग धारणाये है जैसे लोग इसे ज्ञान, शास्र,
विद्या, हुनर या एक कला के रूप में जानते है होता ये है की अधिकांशतः ज्योतिषी
सिर्फ़ साधारण तौर पर कुछ पुस्तकीय ज्ञान के आधार पर ही फ़लदेश करते है 
और फ़लदेश गलत साबित हो जाता है कारण सिर्फ़ इतना है कि यदि थोडा सा 
गहन अध्यन किया गया होता तो फ़लादेश गलत साबित नही होता ! 

एक जातक एक ज्योतिषी से सलाह लेता है ज्योतिषी सिर्फ़ दशम भाव मे स्थित 
एक कारक ग्रह देखता है जिसकी दशा प्रारम्भ होने वाली थी ! ज्योतिषी ने 
फ़लादेश किया कि आने वाले छः माह के दौरान नौकरी मे पदोन्नति, व्यापार 
मे तरक्की या लाभ प्राप्त होगा ! समय बीतता गया जातक के जीवन मे कोई शुभ 
बदलाव होने के बजाय, उसे हानि हुई ! एक फ़लादेश गलत साबित होता है कुछ 
ज्योतिष को दोष देते है कुछ ज्योतिषी को ! आखिर दोषी है कौन ज्योतिष या 
ज्योतिषी ! वास्तव मे अगर गहन मन्थन किया जाये तो ना ज्योतिष दोषी है ना
ही ज्योतिषी ! हां ज्योतिषी का इतना कसूर है कि उसने सिर्फ़ किताबी ज्ञान का 
इस्तेमाल किया जब कि पुस्तकीय सिद्धन्तों की गहराई समझने की आवश्यकता
है उन्हे अनुभव मे लाने से पूर्व प्रयोगात्मक रूप से ग्रह, राशि एवम नक्षत्र का 
वास्तविक एवम तत्कालिक स्वभाव एवम गुण का अध्यन करना चाहिये था !

इसी तरह अन्य मामलों में ज्योतिषी भविष्यवाणी करते हैं कि:-
समय बुरा चल रह है दुर्घटना हो सकती है आप अस्पताल में भर्ती हो सकते है !
शादी हो सकती है ! तलाक होगी ! अपनी नौकरी खो सकते हैं !
लेकिन यह कभी नहीं हुआ, भविष्यवाणी गलत हो गयी !
इन सभी मामलों में ज्योतिषी सहित सब हैरान रह गये !
परन्तु ज्योतिषी अभी भी सफ़ाई देते है कि विपरीत राज योग के कारण ऐसा हुआ आदि आदि !

यदि ज्योतिषी ग्रह , राशियों एवम नक्षत्रों के गुण स्वभाव का गहन अध्यन करने के 
साथ साथ वैदिक ज्योतिष के सिधन्तो का अध्यन करें तो सत प्रतिशत शुद्ध फ़लादेश
या भविष्यवाणी की जा सकती है !

रविवार, 28 नवंबर 2010

ज्योतिषीय योगो की सत्यता (कृष्णमूर्ति पद्धति)


ज्योतिषीय योगो की सत्यता : आज के समय में परंपरागत ज्योतिषी,  वैदिक ज्योतिषी बन तरह तरह के ज्योतिषीय योगो की बात करते है उनके अनुसार जातक या मनुष्य अमीर होगा या गरीब होगा, राजा होगा या फकीर होगा ये उसकी कुंडली में ग्रह योगो के आधार पर ही निर्धारित हो सकता है ! आज विभिन्न प्रकार के राजयोगो की ज्योतिष जगत में बहुत  चर्चा है गजकेसरी योग, बुधादित्य योग, लक्ष्मी योग, दरिद्र योग आदि आदि न जाने कितने ही शुभ-अशुद्ध योग ज्योतिष जगत में प्रचारित है ! इन योगो का प्रतिपादन किस आधार पर किया गया समझ से बाहर की बात है ! 
आज व्यावहारिक रूप से यदि ज्योतिषीय योगो की सत्यता का मूल्याङ्कन किया जाता है तो स्पष्ट होता है की सैकड़ो लोग जिनकी कुंडली में गजकेसरी, लक्ष्मी योग आदि शुभ एवं राज सुख दाई योग मौजूद है परन्तु वह दो वक्त भर पेट रोटी को मौताज है ! ठीक इसी प्रकार कुछ योग जिनका परिणाम या प्रभाव ज्योतिष जगत में यह बताया जाता है की प्रेमविवाह योग , पति वियोग योग, बंधन योग (जेल यात्रा), पुत्र वियोग योग, द्विभार्या योग, द्विपतियोग, आदि आदि न जाने कितने ही योग है यदि सभी की चर्चा की जाये तो संभव नहीं है !
जब हम चर्चा करते है की व्यवहार में यह सब सच नहीं है जहा परम्परागत ज्योतिषी घोषणा करते है की जातक की कुंडली में गजकेसरी योग या लक्ष्मी योग है जातक लोकप्रिय, समृद्ध और अमीर होगा परन्तु इस प्रकार के अनेक योग कुंडली में मौजूद होने के बाद भी अधिकांश लोग दरिद्रता, दुःख तथा कठिनाइयों से ग्रस्त हैं और एक अस्पष्ट जीवन जी रहे है कुछ मामलो में देखा गया की जातक के पास सभी सुविधाए थी पंडित कहते है की योग शुभ है परन्तु जातक ने जीवन में सब कुछ खो दिया है, सभी सुविधाए समाप्त हो गयी बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे जातक बेघर हो गया !
आज जब परम्परागत ज्योतिषी ग्रह योगो के आधार पर किसी महिला से कह देते है कि आपके पति की कुण्डली मे द्विभार्या योग है तो वो परेसान हो जाती है फ़िर शुरु होत है योग शान्ति का खेल ! कुछ पारंपरिक ज्योतिष जगत के विद्वान पहले अशुभ योग का बखान करते है फ़िर भविष्य में सफलता एवम खुशी की झूठी उम्मीदें देकर ग्राहक को प्रोत्साहित करते है क्या कभी किसी ज्योतिषी ने एक निर्धन बेघर व्यक्ति जिसकी कुण्डली मे गजकेसरी योग और लक्ष्मी योग है उसके अप्रभावी योग को प्रभावी करने मे सफ़लता प्राप्त की है !
वैदिक ज्योतिष कहती है की जो कुण्डली मे है वो ही प्राप्त होगा रही बात कि कब और कैसे प्राप्त होगा यह ग्रह अपने स्वामित्व एवम स्थित राशि एवम नक्षत्र की सूचना के अनुसार एवम दशाओ के समय ही प्राप्त होता है !
अब हम चर्चा करे कि आखिर योग है क्या ग्रह की किसी राशि मे, किसी ग्रह के साथ संयोजन ही एक योग है परन्तु यह योग क्या कह रह है यह ग्रह की स्थिति एवम स्वमित्व के ऊपर निर्भर करता है !
अब ज्योतिषी कहते है कि अमुक ग्रह शुभ है अमुक ग्रह अशुभ है तो सबसे पहले यह स्पष्ट करना चाह्ता हू कि ना ही कोई ग्रह शुभ होता है ना ही अशुभ !
अब चर्चा कि कहा जाता है कि 6, 8 एवं 12 भाव अशुभ है तो सबसे पहले यह समझने का प्रयास करे कि 6 भाव सभी विषयो के लिये अशुभ नही है यदि हम किसी प्रतियोगिता मे जातक के सम्मिलित होने के विषय पर देखे तो 7 भाव प्रतियोगिता मे जातक के प्रतियोगी को दर्शाता है तथा ‍6 भाव प्रतियोगी का व्यय भाव है यदि प्रतियोगिता के समय 7 भाव का स्वामी 6 भाव मे गोचर कर रहा है तथा वह 11 वे भाव के कारक ग्रह के नक्षत्र मे गोचर वश है तो जातक को सफ़लता प्राप्त होगी इसमे तनिक भी सन्देह नही है !
किसी कुंडली में राजयोग या अशुभ योग होना एक गारंटी नही है ! ग्रहो के परम्परागत गुणो, स्वमित्व एवम स्थित भाव एवम नक्षत्रो का अध्यन किये बिना कोई भी फ़लादेश करना पांडित्य की अल्पता का प्रमाण प्रस्तुत करता है !

ज्योतिषीय योगो की सत्यता (कृष्णमूर्ति पद्धति)


ज्योतिषीय योगो की सत्यता : आज के समय में परंपरागत ज्योतिषी,  वैदिक ज्योतिषी बन तरह तरह के ज्योतिषीय योगो की बात करते है उनके अनुसार जातक या मनुष्य अमीर होगा या गरीब होगा, राजा होगा या फकीर होगा ये उसकी कुंडली में ग्रह योगो के आधार पर ही निर्धारित हो सकता है ! आज विभिन्न प्रकार के राजयोगो की ज्योतिष जगत में बहुत  चर्चा है गजकेसरी योग, बुधादित्य योग, लक्ष्मी योग, दरिद्र योग   आदि आदि न जाने कितने ही शुभ-अशुद्ध योग ज्योतिष जगत में प्रचारित है ! इन योगो का प्रतिपादन किस आधार पर किया गया समझ से बाहर की बात है ! आज व्यावहारिक रूप से यदि ज्योतिषीय योगो की सत्यता का मूल्याङ्कन किया जाता है तो स्पष्ट होता है की सैकड़ो लोग जिनकी कुंडली में गजकेसरी, लक्ष्मी योग आदि शुभ एवं राज सुख दाई योग मौजूद है परन्तु वह दो वक्त भर पेट रोटी को मौताज है !ठीक इसी प्रकार कुछ योग जिनका परिणाम या प्रभाव ज्योतिष जगत में यह बताया जाता है की प्रेमविवाह योग , पति वियोग योग, बंधन योग (जेल यात्रा), पुत्र वियोग योग, द्विभार्या योग, द्विपतियोग, आदि आदि न जाने कितने ही योग है यदि सभी की चर्चा की जाये तो संभव नहीं है !
जब हम चर्चा करते है की व्यवहार में यह सब सच नहीं है जहा परम्परागत ज्योतिषी घोषणा करते है की जातक की कुंडली में गजकेसरी योग या लक्ष्मी योग है जातक लोकप्रिय, समृद्ध और अमीर होगा परन्तु इस प्रकार के अनेक योग कुंडली में मौजूद होने के बाद भी अधिकांश लोग दरिद्रता, दुःख तथा कठिनाइयों से ग्रस्त हैं और एक अस्पष्ट जीवन जी रहे है कुछ मामलो में देखा गया की जातक के पास सभी सुविधाए थी पंडित कहते है की योग शुभ है परन्तु जातक ने जीवन में सब कुछ खो दिया है, सभी सुविधाए समाप्त हो गयी बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे जातक बेघर हो गया !
आज परम्परागत ज्योतिषियों से चर्चा करो तो कहते है की र्चा  सकते हैं..इन rajayogas कुछ पारंपरिक करने के लिए और भविष्य में सफलता खुशी की झूठी उम्मीदें देकर ग्राहक को प्रोत्साहित करने के लिए ज्योतिषियों सुखद संयोजन कर रहे हैं. एक बेघर व्यक्ति भीगजकेसरी  योग और लक्ष्मी योग है.  एक कुंडली में राजयोग  का अस्तित्व एक गारंटी है कि एक एक के जीवन का आनंद नहीं है. हमारी परम्परागत पंडितों में से कई को ये तथाकथित Rajayogas पढ़ने के रूप में वे इच्छा का प्रयास. वहां पूरा करने के लिए नियम वैसे भी व्याख्या करते हैं, कम से कम वे ऐसा लगता है स्वेच्छाबलि है. एक तो 6 या 8 या 12 के स्वामी 12, Vipreetha Rajyoga में है बोली लगा सकते हैं.यदि किसी व्यक्ति का एक समान चार्ट उत्पन्न होता है और यह दिखाया गया है कि सभी Vipreetha Rajyoga के लिए उल्लेख किया सामग्री लागू है लेकिन कुछ भी नहीं था क्या हुआ हैं, वह चारों ओर झाड़ी को हरा दिया है. एक धनु में पैदा हुआ व्यक्ति 12 वीं घर में (8 प्रभु) चाँद और सूरज (9 प्रभु) था, 3 डिग्री के अलावा. चंद्रमा शुक्र उप में था, और सूर्य मंगल उप में था. देशी सूर्य अवधि के दौरान पैसे बनाने के लिए संघर्ष किया था और दुर्बल चंद्रमा के दशक में भाग्यmahadasa, कैसे? जब दोनों सूर्य और चंद्रमा एक ही राशि में 12 घर में हैं, वही नक्षत्र अनुराधा 2 से खारिज कर दिया और 3 शनि महाराज. कारण यह है सूर्य 5 वीं और 12 वीं प्रभु मंगल उप में था उसे अटकलों में पैसा ढीला करने के लिए कारण होता है. 8 प्रभु जबकि6 और 11 वीं प्रभु शुक्र का उप में चंद्रमा दुर्बल बनाया उसे चंद्रमा Mahadasa दौरान भाग्य कमाते हैं. इस ज्योतिषियों जो पारंपरिक प्रणाली को और अधिक भ्रमित पालन करता है. वे इस तथ्य खुले तौर पर स्वीकार करने में संकोच.
वहाँ धन में रोलिंग लोग, किसी योग के बिना जिम्मेदार पदों पर रहे हैं. मैं एक बहुत ही सफल व्यवसाय आदमी से मुलाकात की. वह करोड़ों डॉलर बना देता है. उसकी कुंडली में वहाँ 3 दुर्बल ग्रहों और कोई Rajayoga हैं. जब मैं उनके कार्यालय से बाहर आया, उनके सहायकमुझे अपने जन्म चार्ट दिखाया. चार ग्रहों yogas में पाए गए. अपने भाग्य को देखो? उन्होंने मुझसे कहा कि एक क्षुद्र वेतन बढ़ाने के लिए व्यापार आदमी को सलाह देते हैं.
वहाँ ज्योतिषियों का दावा है कि 1, 5, 9 (जो कहा जाता है Kona मकान हो) अच्छे परिणाम से संकेत मिलता होगा रहे हैं. लेकिन फिर वे गलत हैं. उदाहरण के लिए, कैंसर के लिए ascendants 5 वीं और 9 घर चिह्न (नक्षत्रों) तारामंडल है कि 6 से प्रभु का शासन कर रहे हैंया 8 या 12. इन नक्षत्रों में 5 वीं या 9 घर में ग्रहों तो कैंसर ascendants साथ देशी को भयानक परिणाम देती है. लेकिन वे मंगल ग्रह के नक्षत्र में ग्रहों की अवधि के दौरान भाग्यशाली रहे हैं भले ही मकान 3 या 8 या 12 हो सकती है. इसलिए, ग्रहों छह घरों, 8 में posited, 12 हमेशा बुराई परिणाम उपज नहीं है. तो यह किया जा सकता खुले तौर पर कहा कि सभी नौ ग्रहों उनकी प्रकृति और स्वभाव के बावजूद अच्छे और बुरे की घटनाओं के कारण. इस ज्योतिषियों जो परंपरागत वैदिक ज्योतिष प्रणाली का पालन करता हैअधिक उलझन में है. वे इस तथ्य खुले तौर पर स्वीकार करने में संकोच. इसके अलावा वहाँ अनगिनत नियमों और yogas, जिनमें से एक में सक्षम ज्योतिषी केवल एक ग्राहक कृपया कुछ स्मृति में हो सकते हैं.

शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

कृष्णमूर्ति पद्धति कारक ग्रह

कृष्णमूर्ति पद्धति में "कारक ग्रहों" को सर्वाधिक महत्व प्रदान किया जाता है अब प्रश्न यह उठता है कि कारक हैं कौन से ग्रह और इनका क्या योगदान है ज्योतिष में कुण्डली का अध्यन करते समय किसी भी विषय या घटना के जानने के लिये उस से सम्बन्धित भाव का उस भाव के स्वामी ग्रह का उस भाव मे स्थित ग्रह उस भाव स्वमी ग्रह एवम उस भाव को देखरहे ग्रह तथा उस घटना या भाव के स्थाई कारक ग्रहों का अध्यन किया जाता है परन्तु कृष्णमूर्ति पद्धति में जन्म कुण्डली एवम प्रश्न कुण्डली दोनो के अध्यन में कारक ग्रहों को प्रमुखता से महत्व दिया जाता है ! 

कारक ग्रह : ग्रह मुख्य रूप से उस भाव का फ़ल प्रदान करते हैं जिस भाव मे वह स्थित होते हैं,  जिस भाव के स्वामी होते हैं, जिस भाव पर द्रष्टि रखते हैं अर्थात इन भावों के कारक होते हैं या इन भावों से सम्बन्धित परिणाम प्रदान करते हैं परन्तु कृष्णमूर्ति पद्धति में कारक ग्रह निर्धारण की पद्धति कुछ भिन्न है जो इस पद्धति की मुख्य जान है ! जो श्रेणी के अनुसार निम्नलिखित हैं :-
१.     भाव में स्थित ग्रह के स्वामित्व वाले नक्षत्रों में स्थित ग्रह !
२.    भाव में स्थित ग्रह !
३.    भाव के स्वामी ग्रह के स्वामित्व वाले नक्षत्रों में स्थित ग्रह !
४.    भाव का स्वामी ग्रह !
५.    प्रमुख कारक ग्रह के साथ स्थित ग्रह भी कारक होता है जब कि राहु तथा केतु यदि कारक ग्रह को देख रहे हों तो वह भी बलशाली कारक होजाते हैं !
उदाहरण :-
किसी भी कुण्डली के अध्यन करते समय यदि विवाह के विषय मे फ़लादेश करना हो तो सर्व प्रथम यह देखना आवश्यक है कि विवाह के लिये किन किन भावों का संयुक्त रूप से क्रियाशील होना विवाह के लिये आवश्यक है !
१.     सप्तम भाव :  विवाह के लिये मुख्य रूप से सप्तम भाव जिम्मेदार होता है सप्तम अर्थात सम्पर्क मे रहने वाला या वाली , सप्तम भाव जीवनसाथी को दर्शाता है  !
२.     द्वितीय भाव : द्वितीय भाव परिवार को दर्शाता है द्वितीय भाव परिवार में ब्रद्धि को दर्शाता है !
३.     ग्यारहवां भाव जातक के जीवन में लाभ दर्शाता है सच्चे मित्र को दर्शाता है !
४.     शुक्र मुख्य रूप या स्थाई रूप से विवाह का कारक होता है !

अतः विवाह के लिये कुण्डली के उक्त तीन भावों का संयुक्त रुप से अध्यन अर्थात उक्त तीनों भावों के कारक ग्रहों अध्यन किया जाता है ! अर्थात उक्त कारकों की संयुक्त महादशा, अन्तर्द्शा, प्रत्यंतर्दशा मे ही विवाह होगा !

जातक के जीवन के किन विषयों के अध्यन के लिये कुण्डली के किन भावो के करकों का संयुक्त रुप से अध्यन किया जाता है :
विषय                                  घटना के लिये उत्तरदयी भाव या कारक
स्वास्थ                          :     प्रथम एवम एकादश भाव !
रोग                               :     छ्ठा, आठवां एवम बारहवां भाव !
दुर्घटना                          :     आठवां, बारहवां एवम बाधक भाव !
आर्थिक स्थिति               :     दूसरा, छठा एवम ग्यारहवां भाव !
आर्थिक हानि                  :     आठवां, बारहवां एवम पंचम भाव !
स्थान परिवर्तन              :     तीसरा, दसवां एवम बारहवां भाव !
शिक्षा                            :     चतुर्थ, नवम एवम एकादश भाव !
भूमि, भवन                    :     चतुर्थ, एकादश एवम द्वादश भाव !
संतान जन्म                  :     द्वितीय, पंचम एवम एकादश भाव !
प्रेम प्रसंग                      :     द्वितीय, सप्तम एवम एकादश भाव !
तलाक                          :     प्रथम, छठा एवम दशम भाव !
व्यापार                         :     द्वितीय, दशम एवम एकाद्श भाव !

कृष्णमूर्ति पद्धति कारक ग्रह

कृष्णमूर्ति पद्धति में "कारक ग्रहों" को सर्वाधिक महत्व प्रदान किया जाता है अब प्रश्न यह उठता है कि कारक हैं कौन से ग्रह और इनका क्या योगदान है ज्योतिष में कुण्डली का अध्यन करते समय किसी भी विषय या घटना के जानने के लिये उस से सम्बन्धित भाव का उस भाव के स्वामी ग्रह का उस भाव मे स्थित ग्रह उस भाव स्वमी ग्रह एवम उस भाव को देखरहे ग्रह तथा उस घटना या भाव के स्थाई कारक ग्रहों का अध्यन किया जाता है परन्तु कृष्णमूर्ति पद्धति में जन्म कुण्डली एवम प्रश्न कुण्डली दोनो के अध्यन में कारक ग्रहों को प्रमुखता से महत्व दिया जाता है ! 


कारक ग्रह : ग्रह मुख्य रूप से उस भाव का फ़ल प्रदान करते हैं जिस भाव मे वह स्थित होते हैं,  जिस भाव के स्वामी होते हैं, जिस भाव पर द्रष्टि रखते हैं अर्थात इन भावों के कारक होते हैं या इन भावों से सम्बन्धित परिणाम प्रदान करते हैं परन्तु कृष्णमूर्ति पद्धति में कारक ग्रह निर्धारण की पद्धति कुछ भिन्न है जो इस पद्धति की मुख्य जान है ! जो श्रेणी के अनुसार निम्नलिखित हैं :-
१.     भाव में स्थित ग्रह के स्वामित्व वाले नक्षत्रों में स्थित ग्रह !
२.    भाव में स्थित ग्रह !
३.    भाव के स्वामी ग्रह के स्वामित्व वाले नक्षत्रों में स्थित ग्रह !
४.    भाव का स्वामी ग्रह !
५.    प्रमुख कारक ग्रह के साथ स्थित ग्रह भी कारक होता है जब कि राहु तथा केतु यदि कारक ग्रह को देख रहे हों तो वह भी बलशाली कारक होजाते हैं !
उदाहरण :-
किसी भी कुण्डली के अध्यन करते समय यदि विवाह के विषय मे फ़लादेश करना हो तो सर्व प्रथम यह देखना आवश्यक है कि विवाह के लिये किन किन भावों का संयुक्त रूप से क्रियाशील होना विवाह के लिये आवश्यक है !
१.     सप्तम भाव :  विवाह के लिये मुख्य रूप से सप्तम भाव जिम्मेदार होता है सप्तम अर्थात सम्पर्क मे रहने वाला या वाली , सप्तम भाव जीवनसाथी को दर्शाता है  !
२.     द्वितीय भाव : द्वितीय भाव परिवार को दर्शाता है द्वितीय भाव परिवार में ब्रद्धि को दर्शाता है !
३.     ग्यारहवां भाव जातक के जीवन में लाभ दर्शाता है सच्चे मित्र को दर्शाता है !
४.     शुक्र मुख्य रूप या स्थाई रूप से विवाह का कारक होता है !


अतः विवाह के लिये कुण्डली के उक्त तीन भावों का संयुक्त रुप से अध्यन अर्थात उक्त तीनों भावों के कारक ग्रहों अध्यन किया जाता है ! अर्थात उक्त कारकों की संयुक्त महादशा, अन्तर्द्शा, प्रत्यंतर्दशा मे ही विवाह होगा !


जातक के जीवन के किन विषयों के अध्यन के लिये कुण्डली के किन भावो के करकों का संयुक्त रुप से अध्यन किया जाता है :
विषय                                  घटना के लिये उत्तरदयी भाव या कारक
स्वास्थ                          :     प्रथम एवम एकादश भाव !
रोग                               :     छ्ठा, आठवां एवम बारहवां भाव !
दुर्घटना                          :     आठवां, बारहवां एवम बाधक भाव !
आर्थिक स्थिति               :     दूसरा, छठा एवम ग्यारहवां भाव !
आर्थिक हानि                  :     आठवां, बारहवां एवम पंचम भाव !
स्थान परिवर्तन              :     तीसरा, दसवां एवम बारहवां भाव !
शिक्षा                            :     चतुर्थ, नवम एवम एकादश भाव !
    





बुधवार, 3 नवंबर 2010

कृष्णमूर्ति पद्धति के आधारभूत सिद्धान्त

कृष्णमूर्ति पद्धति के आधारभूत सिद्धान्त

१.     ज्योतिष की आम पद्धतियों में प्रायः यह देखा जाता है कि किसी भाव की राशि कौन सी है, परन्तु कृष्णमूर्ति पद्धति में यह देखा जाता है कि भाव के प्रारम्भिक बिन्दु पर कौन सी राशि है इसे तथा प्रारम्भिक बिन्दु पर कौन सा नक्षत्र है कृष्णमूर्ति पद्धति की भाषा मे इसे कहा जाता है कि अमुक भाव का कस्प फलां राशि तथा फलां नक्षत्र मे है ! उदाहरण के लिये मानो कुण्डली की लग्न मेष है लग्न स्पष्ट 0 राशि: 14 अंश: 25 कला: 20 विकला है अतः लग्न कस्प  मेष राशि तथा भरणी नक्षत्र में है अतः लग्न पर मंगल एंव शुक्र का सम्मिलित प्रभाव रहेगा ! समझने वाली बात यह है कि चूंकि लग्नेश मंगल है अतः जातक का स्वभाव, व्यक्तित्व, व्यवहार आदि मंगल के प्रक्रतिक गुणो के आधार पर होगा परन्तु लग्न का नक्षत्रेश शुक्र है जो कि मंगल के प्रक्रतिक गुणों में अपने प्रक्रतिक गुणों के अनुरूप संशोधन या परिवर्तन करेगा !

२.     समस्त ग्रह जिस भाव में स्थित होते हैं वहां फल प्रदान करते है अब प्रश्न ये कि फल क्या होगा तो फल का विषय वो भाव निर्धारित करेगा जिस या जिन भावों का वो ग्रह  स्वामी है अब प्रश्न यह उत्पन्न होगा कि फल की प्रक्रति या शुभता-अशुभता क्या होगी तो वह उस नक्षत्र स्वामी ग्रह के द्वारा निर्धारित होगी जिस नक्षत्र मे वह ग्रह स्थित है !

३.     कृष्णमूर्ति पद्धति में किसी ग्रह की नैसर्गिक शुभता - अशुभता के विषय में विचार नहीं किया जाता है न ही ग्रह की उच्च य नीच अवस्था का विचार किया जाता है ! ग्रह जिन जिन भवों का सूचक होता है उन भावों के सम्बन्धित फलों को अपनी द्शा अवधि मे प्रदान करता है यदि ग्रह उन्नतिकारक  भावों को सूचित कर रहा है तो शुभफल प्रदान करेगा यदि अवनतिकारक भावों को सूचित कर रहा है तो अशुभफल प्रदान करेगा !

४.     इस पद्धति में लग्न, द्वितीय, त्रतीय, षष्ठ्म, दशम तथा एकादश भाव को उन्नतिकारक तथा चतुर्थ, पंचम, सप्तम, अष्ट्म, नवम एंव द्वादश भव को अवनतिकारक माना जाता है !