मंगलवार, 4 मई 2010

भारतीय ज्योतिष में कृष्णमूर्ति जी का योगदान


भारतीय ज्योतिष में कृष्णमूर्ति जी का अतुलनीय योगदान है कृष्णमूर्ति जी इस बात को समझ गए थे की ज्योतिष के फलादेश में नक्षत्र का क्या महत्व है वास्तव में यदि बाल्मीकि रामायण या अन्य प्राचीन ग्रंथो में नक्षत्र    
का ही उल्लेख है !

जब बच्चे का जन्म होता है नक्षत्र ही देखा जाता है जब कोई भी संस्कार होता है नक्षत्र ही देखते है फिर फलादेश करते समय राशी ही क्यों ?

भारतीय ज्योतिष में यदि किसी विद्वान ने वास्तव में ज्योतिष सिद्धांतो की खोज के लिए कम किया है तो वो 
कृष्णमूर्ति जी ही है उन्होंने यह विचार किया की जब पाँच मिनट के अन्तराल में जन्म लेने वाले दो बच्चों के जीवन में , लग्न एक तथा कुंडली एक सी होने के बावजूद भी जबरदस्त अंतर होते है उनकी प्रक्रति अलग अलग होती है दोनों की पढाई , नौकरी , शादी सभी में अंतर , अकिर इसका कारण क्या है तो उन्होंने इस पर काफी खोज की तब वह इस निष्कर्ष पर पहुचे की सारा कुछ  नक्षत्र पर ही निर्भर करता है !

उन्होंने इसके लिए विंशोत्तरी दशा  को आधार माना जिस प्रकार विंशोत्तरी दशा में ग्रहों को दशा वर्ष निर्धारित है उसी आधार पर उन्होंने प्रतेक नक्षत्र  को  नो भागो  विभाजित किया इसके लिए जिस प्रकार  नवांश कुंडली का वैदिक महत्त्व  है उसको ही आधार मानकर जब नक्षत्र को विभाजित  कर फलादेश किया गया तो जबर्दुस्त सफलता  प्राप्त हुई उन्होंने अपनी शोध को सम्पूर्ण ज्योतिष समाज के सामने रखा पर सभी उनके विचारो से सहमत नहीं हुए !

आज जब ज्योतिष का प्रचार प्रसार अपनी चरम ऊँचाइयों पर है तब कृष्णमूर्ति पद्धति के आधार पर फलकथन करने वलून की संख्या में भी जबर्दुस्त ब्रद्धि हुई है कारण इस पद्धति में कोई भी ग्रह किसी राशी में उंच नीच नहीं होता , गढ़ जिस नक्षत्र में स्थित होता है उस नक्षत्र स्वामी ग्रह के स्थित एवम स्वामित्व वाले भाव के अनुरूप ही फल प्रदान करता है !

कृष्णमूर्ति पद्धति में भाव का निर्धारण उसके प्रारंभिक बिंदु से किया जाता है , कृष्णमूर्ति  जी के अनुसार ग्रह किस भाव में है किस राशी में है इस सबसे ज्यादा महत्व इस बात का है की ग्रह किस नक्षत्र में स्थित है !