शुक्रवार, 10 जुलाई 2015

ज्योतिष शतप्रतिशत विज्ञान है

आज हम देख रहे है की समाज में ज्योतिष की लोकप्रियता बढती जा रही है, मांग और पूर्ति का भी एक सिधांत है की जब किसी चीज की मांग ज्यादा बढ़ जाती है तो वहां कुछ न कुछ गलत होने लगता है आज हमें सोचना चाहिए की माता सीता का हरण करने के लिए रामण को एक साधू का भेष धारण करना पड़ा था आखिर इसलिए ही की साधू के प्रति माता सीता आस्था रखती थी
और आसानी से रामण उनकी भावनात्मक इस्थितियों का गलत इस्तेमाल कर उनका हरण कर लंका ले जाने में कामयाब हो जायेगा !
ठीक इसी प्रकार आज जब ज्योतिष का प्रचार - प्रसार तथा लोकप्रियता बढ़ रही है तो कुछ लोग धन के लोभवश ज्योतिष के अधकचरे ज्ञान का उपयोग कर स्वयं तो अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं पर ज्योतिष जो वैदिक ऋषियों तथा वेदों का अमूल्य ज्ञान है उसकी लोक्रियता तथा विस्वसनीयता को छति हो रही है !
आज समाज में यह देखने को मिलता है की वैज्ञानिक तथा अन्य लोग देश के  विख्यात ज्योतिषियों से टीवी के प्रोग्रामो में चुनौती देते हैं की वह ज्योतिष की विस्वसनीयता सिद्ध करें टीवी प्रोग्राम में पुरे जनमानस के सामने ज्योतिषी यह सिद्ध नहीं कर पते की ज्योतिष विज्ञानं है क्यों कारण सिर्फ इतना सा है की उनके ज्ञान पर भौतिकता और पर्दा पड़ा है !
ज्योतिष धन उपार्जन का साधन हो सकती है पर ज्योतिष साधना का विषय है और साधना वातानुकूलित कमरों में रहकर नहीं हो सकती टीवी पर प्रोग्राम देखकर इन ज्योतिषियों को तो सरम नहीं आइ होगी पर प्रोग्राम देखकर मुझे या जो भी ज्योतिष प्रेमी हैं उनको जरुर दर्द हुआ होगा होना भी चाहिए , इस जगत में कोई भी विज्ञानं पूर्ण नहीं है पूर्ण सिर्फ परमात्मा है तो फिर ज्योतिष विज्ञानं की ही प्रमाणिकता क्यों मांगी जा रही है कारण ये जो भी कथाकथित ज्योतिष के विद्वान हैं सस्ती लोकप्रियता हाशिल करने के चक्कर में राशिफल , भाविश्यवानियाँ टीवी , पत्रिकाओं, अखबारों आदि में करते है हल्दी का रंग मालूम नहीं है पंसारी बने धूम रहे है दस्तखत करना आता नहीं कलक्टर बनाने का फार्म भर रहे हैं !
अरे भाई एक राशी के करोणों लोग हैं आप एक बांश से सभी को हांके जा रहे हो जोकरई करना अब भी बंद कर दो अपना नहीं तो कम से कम जिस ज्योतिष से तुम्हारी रोटी चल रही है उसकी ही खातिर सही अरे भाई अंडा खाओ तो खाओ मुर्गी पर तो तरस खाओ प्यारे !
अब रही बात ज्योतिष की तो भाई एक अस्पताल में एक ही मर्ज  के पाँच मरीज भर्ती हुए एक ही कमरे में भर्ती किये गए एक ही डाक्टर  इलाज करता  है परिणाम एक मरीज दो दिन में , दूसरा तीन दिन में , चौथा चार दिन में , पांचवा ठीक नहीं होता ओपरेशन करना पड़ता है फिर भी मर जाता है क्या अस्पताल की विस्वसनीयता पर या डाक्टर की विस्वसनीयता पर या दवाइयों की विस्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगाना चाहिए प्रत्येक मरीज की अपनी रोग प्रतिकारक सक्तियाँ भिन्न हैं टिक उसी तरह ज्योतिष भी है !

कृष्णमूर्ति पद्धति एक परिचय

ज्योतिष विद्या मूलत: कर्म के सिद्धांत पर आधारित है जिसमे ज्योतिषी किसी भी जातक कि कुंडली के आधार पर उसके भूत भविष्य  एवम वर्तमान का फल कथन करता है !

ज्योतिष में अनेक विधाए है जिनके आधार पर फलकथन किया जाता है जैसे सूर्य सिधांत, जेमिनी, अष्टकवर्ग, परन्तु सभी विधाए राशियों में ग्रहों की स्थिति के आधार पर ही फलकथन करती है कृष्ण मूर्ति पद्धति एक सटीक एवं सूक्ष्म भविष्यवाणी करने में सक्षम पद्धति है इस पद्धति की खोज ज्योतिष जगत के आधुनिक वराहमिहिर ब्रम्हलीन के ऍस कृष्णमूर्ति जी ने किया था , श्री कृष्णमूर्ति जी स्वयम तमिलनाडु सरकार के स्वस्थ विभाग में कार्यरत थे ज्योतिष में उनकी अत्यंत रूचि थी उन्होंने फलित ज्योतिष में भारतीय एवं पाश्चात्य दोनों ही शैलियों की समस्त विधाओं का अध्यन किया और उन्होंने खोज की कि राशियों से अधिक प्रभावशाली नक्षत्र है, उन्होंने यह शोध कि कि ग्रह किस राशि में है इस से अधिक यह महत्वपूर्ण है कि ग्रह किस नक्षत्र में है अर्थात प्रत्येक ग्रह जिस नक्षत्र में स्थित होता है उस नक्षत्र स्वामी के गुण एवम स्वाभाव के अनुरूप परिवर्तित हो जाता है !



उन्होंने जब यह देखा कि जुड़वां बच्चे जन्म लेते है तो जन्म समय में सिर्फ ५ या १० मिनट का अंतर होता है यदि कुंडली देखी जाये तो दोनों के जन्म नक्षत्र, राशि, लग्न यहाँ तक कि पूरी कि पूरी कुंडली एक जैसी हुबहू होती है सिर्फ विंशोत्तरी दशा काल में कुछ अंतर रहता है ब्रम्हलीन कृष्णमूर्ति जी ने यह विचार किया कि जब दोनों जुड़वाँ जन्म लेने वाले जातको की कुंडलिया एक सी है फलादेश भी एक ही है जब कि वास्तविकता कुछ और ही होती है दोने के रूप रंग , स्वाभाव, व्यव्हार, शिक्षा, विवाह, नौकरी आदि में असमानताए रहती है उन्होंने गहन अध्यन किया दिन रात ज्योतिष अनुसन्धान से उन्होंने आखिरकर ये खोज लिया कि जुड़वाँ जन्म लेने वाले बच्चो में ये असमानताए क्यों होती है !

भारतीय वैदिक ज्योतिष मूलरूप से नक्षत्र आधारित है कारण जब बालक का जन्म होता है तो सर्वप्रथम नक्षत्र के आधार पर उसके शुभ अशुभ का ज्ञान किया जाता ही फिर उसके अन्य संश्कारो के निर्धारण के लिए नक्षत्र के आधार पर ही मुहूर्त देखा जाता है जब विवाह कि बात आती है तो वर बधू का मेलापक भी नक्षत्र के आधार पर ही किया जाता है जब भी किसी शुभ कार्य के लिए मुहूर्त का निर्धारण करना होता है तब भी नक्षत्रों को ही प्राथमिकता प्रदान की जाती है कुंडली में भविष्य के फलादेश के लिए भी सर्वाधिक प्रयोग की जाने वाली विंशोत्तरी दशा का निर्धारण भी नक्षत्रों के आधार पर ही होता है  फिर फलादेश के लिए नक्षत्रों का प्रयोग क्यों नहीं !