बुधवार, 14 अप्रैल 2010

ज्योतिषी की समज के प्रति जिम्मेदारियां

आज समाज में ढेरो ऐसी संस्थाएं हैं जो मात्र चार छे महीने में ज्योतिष का कोर्स करा रही हैं क्या चार छह महीने में ज्योतिषी बना जा सकता है या ज्योतिष पढ़ी जा सकती है यह जो भी संस्थाएं कर रही हैं सरकार का इनपर नियंत्रण होना चाहिए ज्योतिष एक भारतीय वैदिक विज्ञानं है इसकी प्रगति होनी चाहिए पर यदि जिस प्रकार संस्थाएं प्रमाण पत्र दे देकर झोला छाप ज्योतिषियों की फौज तैयार कर रही हैं यह समाज और देश  के  भविष्य के लिए अहितकर है कारण जब एक विज्ञानं का विद्यार्थी , चिकित्सा विज्ञानं पढ़कर डाक्टर बनना चाहता है तो सबसे पाहिले उसे एक परीछा देनी पड़ती है जिसमे उसे ये सिद्ध करना होता है की वो चिकित्सा विज्ञानं की डिग्री की जो भी पढाई है उसको पढने के योग्य है अर्थात उसमे आधारभूत योग्यता है उसके बाद भी पढने के साथ साथ उसे प्रक्टिकल तौर पर हॉस्पिटल में जाना पड़ता है इसमे जब पाँच छह वर्ष बीत जाते हैं तब उसे डिग्री हासिल होती है 

समाज और ज्योतिष के साथ खिलवाड़ करने वाले भी ज्योतिषी ही हैं कष्ट सबसे बार यही है की आज ज्योतिष का उपयोग इस कदर हो रहा है की इसके भविष्य का भगवान ही मालिक है !  रही  बात ज्योतिष सम्बेलनो की मै ने भी कई सम्बेलन देखे की शायद बड़े बड़े विद्वान आते हैं कुछ नै शोधे प्रस्तुत करे पर कही कुछ नया नहीं होता एक दुसरे को माला पहिनते है एक दुसरे को सम्मान पत्र देते है शाल उढ़ाते है फोटो खिचाते हैं आखिर एक बात समझ में नहीं आती की ये जो भी हो रहा है इसके पीछे ज्योतिष के विद्वान ही हैं !

विद्या किसी की जागीर नहीं है सभी को ज्योतिष पढने का पूरा अधिकार है पर सबसे पहले यह जानना चाहिए की जब हमें यह विस्वाश हो जाये की कुंडली में हम जो देख कर कह रहे हैं यही होना चाहिए नहीं यही है इतना अनुभव होना चाहिए नहीं तो अधुरा ज्ञान खुद के साथ साथ दुसरे को भी डुबो देगा "हम तो डूबेंगे सम तुम को भी ला डूबेंगे" यही होगा !

ये जो भी हो रहा है इसके लिए समाज भी जिम्मेदार है जरा कोर्स करने वाली सस्थाओं के ठेकेदारों से पूछिए की जब सिर्फ पाँच मिनट के अन्तराल में दो बच्चे  जन्म लेते हैं तो उनमे फर्क क्यों होता है इसपर राय दे दोनों के ही कुंडली , लग्न , ग्रह , दशाएं एक सी होती है दोनों की शनि की साडे शाती एक साथ चलती है एक तरक्की करता है एक परेशनियो को झेलता है , ज्योतिष पूर्णतया सत्य है जरुरत  है की गहरे तक पंहुचा जाये पर वक़्त किसके पास है धंधेबाज है !

मेरा उद्देश्य किसी की बुराई  करना नहीं है पर इस विषय पर हम सभी को तथा सरकार को भी विचार करना चाहिए !

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