रविवार, 23 अक्तूबर 2011

दीपावली पूजन विधि


मैं आप सभी के साथ दीपावली के पर्व के अवसर पर होने वाले अनुष्ठान, पूजन आदि के विषय में एक व्यवहारिक चर्चा कर रहा हूं !
आखिर दीपावली क्या है यह क्यों मनाई जाती है ?
कुछ लोग कहते हैं कि भगवान राम चौदह वर्षों के बनवास के बाद वापस आये थे इस कारण उत्सव मनाया जाता है !
कुछ लोग कहते हैं कि भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी इस कारण उत्सव मनाया जाता है ! 
मित्रों कार्तिक मास वर्ष का सबसे अधिक अन्धकार का माह होता है और फ़िर माह की अमावस्या तो सर्वाधिक अन्धकार का दिवस होता है, अन्धकार को हमारी सनातन सभ्यता में अशुभ कहा गया है अन्धकार का अर्थ संकट, दुर्भाग्य, दारिद्र, क्लेश आदि आदि कहा गया है !
जब हमारे समाज-घर आदि में शुभ अवसर अथवा उत्सव होते है तो हम दिये जलाते हैं प्रकाश करते हैं ! 
कार्तिक अमावस्या को सर्वाधिक अन्धकार होता है और हम अन्धकार रूपी दुर्भाग्य, दारिद्र, दुख आदि से मुक्ति हेतु अपने-अपने गृह साफ़-सज्जा आदि करते है नया रंग-रोगन आदि कराते हैं प्रकाश करते है दीप जलाते हैं अपने घरों में हम् गणेश्-लक्ष्मी आदि देवी देवताओं को आमंत्रित् करते हैं उनका पूजन् आदि करते हैं हम आनन्दोत्सव मनाते हैं स्वादिष्ट व्यंजन बनाते हैं ! 
हम इस प्रकाशोत्सव के अवसर पर सर्वप्रथम अपने घरों में सुख-समृद्धि की दात्री महालक्ष्मी जी, शुभता-सौभाग्य प्रदाता गणेश जी, धन के देवता यक्षराज कुबेर आदि देवताओं को आमंत्रित करते हैं उनका स्वागत-सत्कार आदि करते हैं उन्हें प्रसन्न करते हैं जिसका मूल कारण है सुख-समृद्धि-आरोग्य की कामना !
लोग अक्सर मुझसे प्रश्न करते हैं कि दीपावली पूजन आदि किस प्रकार करना चाहिये जिससे हमें जीवन में सुख समृद्धि तथा आरोग्य प्राप्त हो सके ! 
वैसे तो आप सभी ने तमाम पुस्तकों, अखबारों, चैनलों तथा वेबसाइटों आदि में पढा होगा कि दीपावली के अवसर पर सुख-समृद्धि-आरोग्य की कामना हेतु पूजन-अनुष्ठान आदि किस प्रकार करना चाहिये ! 
तमाम तरह के मंत्र, श्लोक तथा सूक्त आदि के साथ पूजन आदि का विधान वर्णन रहता है ! जिसमे मूलतः संस्कृत भाषा होती है ! 
संस्कृत देववाणी है, देव भाषा है किसी भी पूजन-अनुष्ठान आदि में संस्कृत का प्रयोग होना चाहिये यह उत्तम है परन्तु संस्कृत के मंत्र, श्लोक, सूक्त आदि के उच्चारण आदि में बहुत सावधान रहने की आवश्यकता होती है अन्यथा श्लोक, मंत्र, सूक्त आदि का अर्थ अनर्थ होने का भय रहता है जिसके परिणाम स्वरूप पूजन-अनुष्ठान आदि से प्राप्त होने वाले परिणाम भी घातक हो सकते हैं ! 
मित्रों समाज में जो समृद्ध लोग हैं वो दीपावली पर्व की पूजा-अनुष्ठान आदि के लिये आचार्य का सहयोग लेते हैं परन्तु आज के समय दीपावली पर्व पर साधारण व्यक्ति पूजा-अनुष्ठान आदि के लिये आचार्य की व्यवस्था नहीं कर सकता है कारण आर्थिक तथा सामाजिक दोनो ही हो सकते हैं !
परिणामतः समाज का सामान्य व्यक्ति जिसने दीपावली पूजन-अनुष्ठान आदि के विधि-विधान के विषय में पुस्तकों, अखबारों, चैनलों तथा वेबसाइटों आदि के माध्यम से जानकारी की है वह भी सुख-समृद्धि-आरोग्य आदि की कामना से दीपावली पूजन अनुष्ठान आदि करता है जिसमें वह विधि में वर्णित संस्कृत के मंत्र-श्लोक-सूक्त आदि का प्रयोग करता है ! 
संस्कृत के मंत्र-श्लोक-सूक्त आदि का शुद्धता से उच्चारण करना सभी के लिये संभव नहीं है परन्तु सुख-समृद्धि-आरोग्य आदि की कामना के कारण लोग संस्कृत के मंत्र-श्लोक-सूक्त आदि का प्रयोग करते हैं ! 
मेरा यहां ये सब कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि संस्कृत के मंत्र-श्लोक-सूक्त आदि से पूजन आदि नहीं करना चाहिये मेरा कहना सिर्फ़ यह हैं कि यदि आप शुद्ध संस्कृत उच्चारण करने में सक्षम हैं तो आवश्य संस्कृत के मंत्र-श्लोक-सूक्त आदि का प्रयोग करें अन्यथा संस्कृत के मंत्र-श्लोक-सूक्त आसि का अशुद्ध उच्चारण आपकी आपेक्षाओं के विपरीत अशुभ परिणाम प्रदान कर सकता है ! 
दीपावली पूजन् में ये आवश्यक् नहीं है कि आप् सिर्फ़् संस्कृत् के मंत्रों, श्लोकों तथा सूक्तियों के द्वारा ही पूजन् करें क्या आप् ऐसा सोचते हैं कि बिना संस्कृत् के मंत्रों, श्लोकों तथा सूक्तियों के कोई पूजन् अनुष्ठान् सफ़ल् नहीं होता ? 
किसी भी पूजा, हवन् अथवा अनुष्ठान् में सबसे अधिक् आवश्यकता है श्रद्धा की और् श्रद्धा ही भाव के माध्यम् से कर्म् में जब् प्रविष्ठ् हो जाती है तो जन्मता है विश्वास्, और् यदि आप् श्रद्धा और् विश्वास् से परिपूरित् हो कर् किसी पूजा, हवन् अथवा अनुष्ठान् आदि को करते हैं तो लाभ् अथवा आपेक्षित् फ़ल् की प्राप्ति आवश्य् होगी ! 
अब् प्रश्न् उठता है कि दीपावली के पूजन् की बिधि क्या है इसे कैसे करना चाहिये ! 
सर्व् प्रथम् दीपावली के पूजन् के समय् से पूर्व् हम् अपने निवास् अथावा घर् को साफ़् सुथरा करना चाहिये !
पूजा के लिये स्थिर् लग्न् के मिहूर्त् की जानकारी कर् शुभ् लग्न् में ही पूजन् प्रारम्भ् करना चाहिये ! 
पूजन् के पूर्व् चावल् तथा हल्दी के मिश्रण् को घोल् कर् घर् के द्वार् के दोनो तरफ़् स्वास्तिक् चिन्ह् तथा द्वार् के ऊपर् ऊं तथा शंख्, चक्र् गदा, पद्म् (कमल्) आदि निर्मित् करने चाहिये ! घर् के द्वार् पर् सुन्दर् बन्दनवार् बांधना चाहिये घर् के बाहर् रंगोली बनाना चाहिये, गाय् के गोबर् से द्वार् के बाहर् लीपना चाहिये ! कहने का तात्पर्य् है कि स्वयं मनोभाव् ये होने चाहिये कि आज् हमारे घर् मां लक्ष्मी, गणेश् आदि देवता पधारने वाले हैं !
पूजा का नियम् बहुत् साधारण् है सर्वप्रथम् धरती मां की पूजा, फ़िर् नव् ग्रह् पूजा, फ़िर् कलश् पूजन् तत्पश्चात् गणेश्-लक्ष्मी आदि का पूजन् किया जाना चाहिये ! 
पूजन् में श्रद्धा पूर्वक् सर्वप्रथम् देवता को आवाहन् करना चाहिये (बुलाना), आसन् प्रदान् करना चाहिये, स्नान् कराना चाहिये, वस्त्र् समर्पित् करना, तिलक् करना, अक्षत् चढाना, फ़ूल् माला चढाना, विशेष् सामग्री समर्पित् करना (गणेश् जी को दूर्बा-धनिया-गुण्-मोदक् , लक्ष्मी जी को कमल् गट्टे का बीज्-सिन्दूर्-पान्-सुपाड़ी आदि,  नैवेद्य् (प्रसाद्) अर्पित् करना, दीपक् समर्पण्, धूप् दर्शन्, आरती !
  पूजा के आन्त् में श्रद्धा पूर्वक् क्षमा याचना करनी चाहिये !
निवेदन् "हे प्रभु हमने आपका स्वागत् सत्कार् अपनी परिस्थिति, सामर्थ्य् और् ज्ञानानुसार् किया है आप् हमारे घर् पधारे हमारे भाग्य् हैं हमारी सेवा आरती स्वीकार् की हमें धन्य् किया आपने हमसे यदि कोई गलती हुई हो तो अपना जान् हमें क्षमा करना हम् पर् कृपा करें प्रभु हमारे सुख् और् आनन्द् में आप् हमेशा हमारे साथ् रहें"

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