रविवार, 31 अक्तूबर 2010

कृष्णमूर्ति पद्धति


ज्योतिष विद्या मूलत: कर्म के सिद्धांत पर आधारित है जिसमे ज्योतिषी किसी भी जातक कि कुंडली के आधार पर उसके भूत भविष्य  एवम वर्तमान का फल कथन करता है !

ज्योतिष में अनेक विधाए है जिनके आधार पर फलकथन किया जाता है जैसे सूर्य सिधांत, जेमिनी, अष्टकवर्ग, परन्तु सभी विधाए राशियों में ग्रहों की स्थिति के आधार पर ही फलकथन करती है कृष्ण मूर्ति पद्धति एक सटीक एवं सूक्ष्म भविष्यवाणी करने में सक्षम पद्धति है इस पद्धति की खोज ज्योतिष जगत के आधुनिक वराहमिहिर ब्रम्हलीन के ऍस कृष्णमूर्ति जी ने किया था , श्री कृष्णमूर्ति जी स्वयम तमिलनाडु सरकार के स्वस्थ विभाग में कार्यरत थे ज्योतिष में उनकी अत्यंत रूचि थी उन्होंने फलित ज्योतिष में भारतीय एवं पाश्चात्य दोनों ही शैलियों की समस्त विधाओं का अध्यन किया और उन्होंने खोज की कि राशियों से अधिक प्रभावशाली नक्षत्र है, उन्होंने यह शोध कि कि ग्रह किस राशि में है इस से अधिक यह महत्वपूर्ण है कि ग्रह किस नक्षत्र में है अर्थात प्रत्येक ग्रह जिस नक्षत्र में स्थित होता है उस नक्षत्र स्वामी के गुण एवम स्वाभाव के अनुरूप परिवर्तित हो जाता है !

उन्होंने जब यह देखा कि जुड़वां बच्चे जन्म लेते है तो जन्म समय में सिर्फ ५ या १० मिनट का अंतर होता है यदि कुंडली देखी जाये तो दोनों के जन्म नक्षत्र, राशि, लग्न यहाँ तक कि पूरी कि पूरी कुंडली एक जैसी हुबहू होती है सिर्फ विंशोत्तरी दशा काल में कुछ अंतर रहता है ब्रम्हलीन कृष्णमूर्ति जी ने यह विचार किया कि जब दोनों जुड़वाँ जन्म लेने वाले जातको की कुंडलिया एक सी है फलादेश भी एक ही है जब कि वास्तविकता कुछ और ही होती है दोने के रूप रंग , स्वाभाव, व्यव्हार, शिक्षा, विवाह, नौकरी आदि में असमानताए रहती है उन्होंने गहन अध्यन किया दिन रात ज्योतिष अनुसन्धान से उन्होंने आखिरकर ये खोज लिया कि जुड़वाँ जन्म लेने वाले बच्चो में ये असमानताए क्यों होती है !
 
भारतीय वैदिक ज्योतिष मूलरूप से नक्षत्र आधारित है कारण जब बालक का जन्म होता है तो सर्वप्रथम नक्षत्र के आधार पर उसके शुभ अशुभ का ज्ञान किया जाता ही फिर उसके अन्य संश्कारो के निर्धारण के लिए नक्षत्र के आधार पर ही मुहूर्त देखा जाता है जब विवाह कि बात आती है तो वर बधू का मेलापक भी नक्षत्र के आधार पर ही किया जाता है जब भी किसी शुभ कार्य के लिए मुहूर्त का निर्धारण करना होता है तब भी नक्षत्रों को ही प्राथमिकता प्रदान की जाती है कुंडली में भविष्य के फलादेश के लिए भी सर्वाधिक प्रयोग की जाने वाली विंशोत्तरी दशा का निर्धारण भी नक्षत्रों के आधार पर ही होता है  फिर फलादेश के लिए नक्षत्रों का प्रयोग क्यों नहीं !

1 टिप्पणी:

  1. adarneeya pandit ji,mera janm27.01.1961 8.15pm haldwani up mey hua hai .kripaya mera bhavishya kathan karney ka kasht karengey kya?
    mere bhavishya mey dhanlaabh,career ki sambhavnaye,jeevan mey prem ,jeevan ke anya pakch bhi dekhiyega/aasha hai aapki visheshagyata ka laabh lekar krishna moorti paddhati ke barey mey samajh sakoonga .
    sader,
    dr.bhoopendra

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