शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

कृष्णमूर्ति पद्धति कारक ग्रह

कृष्णमूर्ति पद्धति में "कारक ग्रहों" को सर्वाधिक महत्व प्रदान किया जाता है अब प्रश्न यह उठता है कि कारक हैं कौन से ग्रह और इनका क्या योगदान है ज्योतिष में कुण्डली का अध्यन करते समय किसी भी विषय या घटना के जानने के लिये उस से सम्बन्धित भाव का उस भाव के स्वामी ग्रह का उस भाव मे स्थित ग्रह उस भाव स्वमी ग्रह एवम उस भाव को देखरहे ग्रह तथा उस घटना या भाव के स्थाई कारक ग्रहों का अध्यन किया जाता है परन्तु कृष्णमूर्ति पद्धति में जन्म कुण्डली एवम प्रश्न कुण्डली दोनो के अध्यन में कारक ग्रहों को प्रमुखता से महत्व दिया जाता है ! 


कारक ग्रह : ग्रह मुख्य रूप से उस भाव का फ़ल प्रदान करते हैं जिस भाव मे वह स्थित होते हैं,  जिस भाव के स्वामी होते हैं, जिस भाव पर द्रष्टि रखते हैं अर्थात इन भावों के कारक होते हैं या इन भावों से सम्बन्धित परिणाम प्रदान करते हैं परन्तु कृष्णमूर्ति पद्धति में कारक ग्रह निर्धारण की पद्धति कुछ भिन्न है जो इस पद्धति की मुख्य जान है ! जो श्रेणी के अनुसार निम्नलिखित हैं :-
१.     भाव में स्थित ग्रह के स्वामित्व वाले नक्षत्रों में स्थित ग्रह !
२.    भाव में स्थित ग्रह !
३.    भाव के स्वामी ग्रह के स्वामित्व वाले नक्षत्रों में स्थित ग्रह !
४.    भाव का स्वामी ग्रह !
५.    प्रमुख कारक ग्रह के साथ स्थित ग्रह भी कारक होता है जब कि राहु तथा केतु यदि कारक ग्रह को देख रहे हों तो वह भी बलशाली कारक होजाते हैं !
उदाहरण :-
किसी भी कुण्डली के अध्यन करते समय यदि विवाह के विषय मे फ़लादेश करना हो तो सर्व प्रथम यह देखना आवश्यक है कि विवाह के लिये किन किन भावों का संयुक्त रूप से क्रियाशील होना विवाह के लिये आवश्यक है !
१.     सप्तम भाव :  विवाह के लिये मुख्य रूप से सप्तम भाव जिम्मेदार होता है सप्तम अर्थात सम्पर्क मे रहने वाला या वाली , सप्तम भाव जीवनसाथी को दर्शाता है  !
२.     द्वितीय भाव : द्वितीय भाव परिवार को दर्शाता है द्वितीय भाव परिवार में ब्रद्धि को दर्शाता है !
३.     ग्यारहवां भाव जातक के जीवन में लाभ दर्शाता है सच्चे मित्र को दर्शाता है !
४.     शुक्र मुख्य रूप या स्थाई रूप से विवाह का कारक होता है !


अतः विवाह के लिये कुण्डली के उक्त तीन भावों का संयुक्त रुप से अध्यन अर्थात उक्त तीनों भावों के कारक ग्रहों अध्यन किया जाता है ! अर्थात उक्त कारकों की संयुक्त महादशा, अन्तर्द्शा, प्रत्यंतर्दशा मे ही विवाह होगा !


जातक के जीवन के किन विषयों के अध्यन के लिये कुण्डली के किन भावो के करकों का संयुक्त रुप से अध्यन किया जाता है :
विषय                                  घटना के लिये उत्तरदयी भाव या कारक
स्वास्थ                          :     प्रथम एवम एकादश भाव !
रोग                               :     छ्ठा, आठवां एवम बारहवां भाव !
दुर्घटना                          :     आठवां, बारहवां एवम बाधक भाव !
आर्थिक स्थिति               :     दूसरा, छठा एवम ग्यारहवां भाव !
आर्थिक हानि                  :     आठवां, बारहवां एवम पंचम भाव !
स्थान परिवर्तन              :     तीसरा, दसवां एवम बारहवां भाव !
शिक्षा                            :     चतुर्थ, नवम एवम एकादश भाव !
    





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