मंगलवार, 21 जून 2011

अमरनाथ यात्रा


इस वर्ष अमरनाथ जी की गुफ़ा में शिव लिंग लगभग 18 फ़िट का निर्मित हुआ है तथा बर्फ़ भी प्रति वर्ष की अपेक्षा बहुत अधिक है परन्तु जो चिंन्ता का विषय है वो यह कि इस वर्ष मानसून बहुत जल्द आ गयांहै जिस कारण यात्रा में असुविधा का खतरा है कारण जिस तरह निचले स्थानों पर बारिस होती है तब ऊंचे पहाडों पर बर्फ़ बारी का खतरा रहता है ! यह चित्र इस वर्ष 2011 में निर्मित शिव लिंग का है !

अमरनाथ यात्रा को उत्तर भारत की सबसे पवित्र तीर्थयात्रा माना जाता है। यात्रा हर वर्ष जुलाई-अगस्त में आयोजित की जाती है। यात्रा के दौरान भारत की विविध परंपराओं, धर्मो और संस्कृतियों की झलक देखी जा सकती है। अमरनाथ यात्रा का मार्ग बहुत ही सुन्दर और मनोरम है। यह माना जाता है कि अगर तीर्थयात्री इस यात्रा को सच्ची श्रद्धा से पूरा कर तो वह भगवान शिव के साक्षात दर्शन पा सकते हैं। भगवान शिव अजर-अमर है। भगवान शिव सृष्टि की आत्मा हैं।                              
इस यात्रा का अपना ही आनंद है। अमरनाथ गुफा तक पहुंचने का रास्ता बहुत कठिन है। यह लगभग 14,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। अमरनाथ का रास्ता साफ-सुथरा है। अमरनाथ गुफा में हर साल सावन मास में प्राकृतिक रूप से बर्फ का शिवलिंग बनता है। यह विश्व में अपनी तरह का अकेला बर्फ का लिंग है। भूविज्ञानियों के अनुसार यह बर्फ की बनी साधारण आकृति है और श्रद्धालुओं ने इसे आस्थावश शिवलिंग का रूप दे दिया है। यहां जो शिवलिंग बनता है वह एक निश्चित स्थान पर और अपने पूर्ण रूप में बनता है। यह शिव भक्तों को अपनी तरफ आकर्षित करता है। अमरनाथ यात्रा करने के लिए हर साल सैकडों की संख्या में तीर्थयात्री यहां पहुंचते हैं। यहां का वातावरण पंडितों, तीर्थयात्रियों, सुरक्षाकर्मियों और दुकानदारों को एक सुत्र में पिरो देता है और सब शिवमय हो जाते हैं।

कोई भी तीर्थयात्री जब पहली बार यहां आता है तो उसकी जिंदगी में कुछ बदलाव जरूर आता है। यहां आने पर व्यक्ति को अद्वितीय शांति का अनुभव होता है। एक बार जो यहां आ जाता है, वह दोबारा यहां आए बिना नहीं रह पाता। एक श्रद्धालु के अनुसार वह यहां पहली बार सन 2000 में आया था। जब वह एक विद्यार्थी था, वहां से घर लौटते समय उसे रास्ते में ही नौकरी मिल गई तब से वह यहां हर साल आता है।
लोक कथाएंगुफा में शिवलिंग के ऊपर बूंद-बूंद जल टपकता है। उसी जल के जमने से शिवलिंग बनता है। श्रद्धालुओं का मानना है कि यह जल रामकुंड से टपकता है जो गुफा के बिल्कुल ऊपर है। पूर्णिमा की रात को शिवलिंग अपने पूर आकार में होता है। कहा जाता है कि  पूर्णिमा के दिन जैसे-जैसे चांद का आकार घटता-बढता है वैसे-वैसे शिवलिंग का आकार भी घटता-बढता है। पंडितों का कहना है कि भगवान शिव ने अपने आप को सावन मास की पूर्णिमा को पहली बार प्रकट किया था। इसी मान्यता के अनुसार सावन मास में अमरनाथ जी की यात्रा को शुभ माना जाता है।
यह माना जाता है कि इसी गुफा में भगवान शिव ने अपनी पत्नी पार्वती को अमरता की कथा सुनाई थी। भगवान शिव ने उनको कथा सुनाने के लिए ऐसी जगह की तलाश की जहां कोई प्राणी उस कथा को सुन न सके। वही जगह आज अमरनाथ जी के नाम से जानी जाती है। रास्ते में उन्होंने अपनी नंदी बैल को पहलगाम में छोडा,चंदनवाडी में चांद को अपनी जटाओं से अलग किया, शेषनाग झील के पास अपने गले में पडे सांप को छोडा, अपने पुत्र गणेश को महागुनास पर्वत पर छोडा, पंचतरनी में पांच महाभूतों(पृथ्वी, अग्नि, जल, आकाश, वायु ) को छोडा, इन पंच महाभूतों के मिलने से ही प्राणी बनता है। इन सब को छोडने के बाद भगवान शिव ने पार्वती के साथ अमरनाथ गुफा में प्रवेश किया। हिरण की खाल पर बैठकर उन्होंने कालाग्नि को बुलाया और उसे आदेश दिया की वहां मौजूद हर जीवित प्राणी को नष्ट कर दे। इसके बाद भगवान शिव ने पार्वती को अमरता की कथा सुनाई। सौभाग्य से भगवान शिव के आसन के नीचे कबूतर का अण्डा सकुशल बच गया और उन्होंने अमरता की कहानी सुन ली। उस अण्डे में से दो अमर कबुतर पैदा हुए क्योंकि उन्होंने अमरता की कहानी सुन ली थी। आज भी ये कबूतर वहीं हैं। उन्होंने इस गुफा को ही अपना घर बना लिया है।
शेषनाग झीलशेषनाग झील में स्नान करना पवित्र माना जाता है। हालांकि इस झील का पानी वर्फीला होता है फिर भी श्रद्धालु इस झील में स्नान करते हैं। पंचतरणी में सब कुछ त्यागने के बाद भगवान शिव ने तांडव किया था। तांडव करते समय भगवान शिव की जटाएं खुल गई, जटाएं खुल जाने के फलस्वरूप गंगा उनकी जटाओं से छिटक गई और पांच धाराओं में प्रवाहित होने लगी।
सन 2000 में अमरनाथ गुफा के प्रबन्धन की जिम्मेदारी राज्य सरकार ने अपने हाथों में ले ली। अब इसकी सारी जिम्मेदारी श्री अमरनाथ जी श्राइन बोर्ड की है जो जम्मू-कश्मीर सरकार के अधिकार में है। अमरनाथ की यात्रा पर केवल आम आदमी ही नहीं बडी-बडी हस्तियां भी आती हैं। अमरनाथ की पवित्र गुफा तक शिव-पार्वती ही नही अनेक तीर्थयात्री, संत-महात्माओं समेत स्वामी विवेकानन्द एवं स्वामी रामतीर्थ भी आ चुके हैं। हजारों सालों पहले आदि शंकराचार्य भी भगवान शिव के दर्शन के लिए यहां आए थे। भारत पर अपनी किताब लिखने से पहले वी. एस. नायपॉल भी अमरनाथ यात्रा कर चुके हैं। अपनी तीर्थयात्रा के बार में उन्होंने लिखा है कि अमरनाथ यात्रां एक अलग अनुभव है और हर व्यक्ति को अपनी जिंदगी में एक बार यहां जरूर आना चाहिए।
यह यात्रा भारत की बहुसंस्कृति को दर्शाती है। इस यात्रा की सबसे बडी विशेषता यह है कि हिन्दुओं का तीर्थस्थल होने के बावजूद इस यात्रा के सभी आयोजक मुस्लिम है। स्थानीय लोगों के अनुसार अमरनाथ गुफा को खोजने वाला भी मुस्लिम चरवाहा ही था। वह अपनी खोई हुई भेड़ को खोजते हुए यहां तक आ गया था। अमरनाथ जी श्राइन बोर्ड के बहुत सार सदस्य भी मुस्लिम हैं। अमरनाथ में लगभग 200 दुकानें हैं। इन दुकानों पर पूजा और जरूरत का अन्य सामान मिलता है। आश्चर्यजनक रूप से इन सभी दुकानों के मालिक मुस्लिम हैं। दुकानदारों के अलावा यहां के सभी टट्टू वाले, कुली और तम्बु वाले भी मुस्लिम ही हैं। वह विषम परिस्थितियों में भी उत्तम सेवाएं देते हैं और गर्व महसुस करते हैं। उनकी सेवाओं की प्रशंसा करने के लिए शब्द कम पड़ जाते हैं।
अमरनाथ यात्रा पर हर साल हजारों साधु आते हैं और वह इस यात्रा की पहचान है। यह यात्रा वनस्पति विज्ञानियों और भूगर्भशास्त्रियों के लिए स्वर्ग है। यहां अनेक प्रकार की जडी़-बूटियां और जंगली फूल मिलते हैं जो उन असाध्य रोगों को भी ठीक कर सकती है जिन्होंने डॉक्टरों और जीव विज्ञानियों को आज भी परेशान कर रखा है। यह जडी़-बूटियां उन पहाडों पर मिलती है जहां कोई नहीं रहता।
अमरनाथ गुफा मार्ग
अमरनाथ गुफा मार्ग घने जंगलों से होकर गुजरता है। इन जंगलों में अनेक सुन्दर नजार देखे जा सकते हैं। इसके अलावा यहां पर लिडर नदी की चंचल और निर्मल धारा भी बडा ही सुन्दर नजारा पेश करती है। चंदनवाडी में शेषनाग और अस्थान मार्ग नदियों का मिलन स्थल है। यहां से पिस्सु घाटी पहुंचनें के लिए 3 किमी. की चढा़ई करनी पडती है। वहां तक पहुंचने का रास्ता सुनसान और मश्किलों भरा है। यह इस यात्रा का सबसे दुर्गम मार्ग है। यह लगभग 10,403 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह रास्ता व्यक्ति को अहसास कराता है कि मोक्ष प्राप्त करना कितना कठिन है।
शेषनाग झील पर पहुंचना भी बहुत कठिन है। यह 1.5 किमी. लम्बी, 1.2 किमी. चौडी और 11,712 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां पहुंच कर तीर्थ यात्रियों को एक अलग प्रकार की अनुभूति होती है। यह झील बहुत ही सुन्दर और पवित्र है। चांदनी रात में इसकी शोभा और भी बढ जाती है। यह झील बर्फ की ऊंची-ऊंची चोटियों से घिरी हुई है। पहलगाम के बाद रात बिताने के लिए यह सबसे उपयुक्त स्थान है। रात के समय तम्बू के समीप जले अलाव के पास बैठकर तीर्थयात्री भगवान शिव एवं शेषनाग की महिमा का गुणगान करते हैं।

शेषनाग झील और महागूनास चोटी के बाद पिस्सु घाटी आती है। यह 15,091 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह इस तीर्थयात्रा की सबसे ऊंची चढाई है। यहां तक पहुंचने के लिए तीर्थयात्रियों को 6 किमी. की चढाई चढनी पडती है। यहीं से सिन्ध घाटी का रास्ता जाता है। वहां पहुंचने के लिए पहले लिडर घाटी पार करनी पडती है। अमरनाथ गुफा के रास्ते में तीन पडाव आते हैं। इस यात्रा का तीसरा और अंतिम पडाव महागुनास चोटी से 7 किमी. नीचे पंचतरणी के मैदानों में पडता है।
महागूनास की चोटी से पंचतरणी जाते हुए रास्ते में पशुपत्री आता है। यहां पर हर साल दिल्ली की श्री शिव सेवक सोसाइटी द्वारा भंडारे का आयोजन किया जाता है। इस भंडारे में विविध प्रकार के व्यंजन परोसे जाते हैं। याद रहे की पशुपत्री में रूकने की व्यवस्था नहीं है लेकिन पंचतरणी में रूका जा सकता है। पंचतरणी से अमरनाथ जी की गुफा 6 किमी. दूर रह जाती है। वहां तक पहुंचने का रास्ता बहुत ही संकरा और घुमावदार है। एक भी गलत कदम आपको 2,000 फीट नीचे पंचतरणी के मैदान में गिरा सकता है।

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